बरसो सावन बरसो
गोबर की परधानी भीगे
काली कुतिया कानी भीगे
इटली की महारानी भीगे
आँख का उनकी पानी भीगे
बरसो सावन बरसो
मनमोहन और अन्ना भीगें
खाकी लाल घुटन्ना भीगें
लोकपाल कंधे पर धरके
नाचें तन्ना-तन्ना भीगें
बरसो सावन बरसो
खाएं प्रिंस पकोड़ा भीगें
हसन अली के घोडा भीगें
राजा और यदियुरप्पा से कुछ
बचे-खुचे तो कौडा भीगें
बरसो सावन बरसो
जनपथ भीगे संसद भीगे
इजलासों का गुम्बद भीगे
छाती पर चढ़कर बैठी जो
काठ की कुर्सी शायद भीगे
बरसो सावन बरसो
बरसो सावन बरसो
बहुत अच्छा गीत लिखा है | बधाई हो |
ReplyDeleteइटली की महारानी को भिगो कर ही माने :)
ReplyDeleteवाह ....... मैं भी यही कहूँगा जीय राजा जिय
यह तो भींगे चुनर वाली या तो आज रपट जाएँ तो ...की याद दिला रहा है ..कुछ रस व्यतिक्रम सा है :(
ReplyDeleteकवितारस में हम सब भींगे
ReplyDeleteराजनीति में सबरस भींगे
अच्छी धूम मचाई है भई
संसद के सब जोकर भींगे.
बरस गयो अब सावन
बरस गयो अब सावन!!
taalii bjaa bjaa ke gaayaa ja saktaa hai kavitaa ko :) . saavan kii aad me tikshan vyang ....annaa bhige .....khaalii laal ghutnnaa bhige ....
ReplyDeleteकरारा व्यंग्य है।
ReplyDeleteसभी को भिगो दिया ...
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