Wednesday, August 31, 2011

पल्टुआ, भैंस और स्टीफन हाकिंग

पल्टुआ बतियाता ही रह गया 
खड़ा नीम की आड़ में
गवने से लौटी
दुक्खी काका की बेटी फुलमतिया से
और भैंस चर गयी लोबिया 
चन्नर पांड़े के तलहवा खेत में.

हमारे समय के 
सबसे बड़े ब्रह्माण्डवेत्ता -- स्टीफन हाकिंग     
कह रहे हैं 
स्वर्ग-नरक कुछ भी नहीं 
कुछ नहीं बचता मृत्यु के बाद 
मर जाता है 
बस मर जाता है
एक बारगी ही समूचा अस्तित्व 
गणितीय प्रमेयों के अंतिम निष्कर्ष यही कहते हैं.

पल्टुआ सिंगुलरीटी थेओरम्स नहीं जानता
नहीं जानता क्वांटम ग्रेविटी 
भैंस को भी नहीं पता 
चमरौंधा लेकर आ रहे हैं चन्नर पांड़े
लुढ़कते-पुढ़कते-गरियाते 
फुलमतिया भी जानती है तो बस इतना --
देख ली गयी तो बदनामी होगी .

मैं , जो कि द्रष्टा हूँ 
कन्फ्यूज हो गया हूँ
सेकेण्ड ला ऑफ़ थर्मोडायनेमिक्स मदद नहीं करता 
और न ही अनसर्टेंटी प्रिंसिपल 

साइकोलोजिकल ऐरो ऑफ़ टाइम कहता है 
भैंस पिटेगी और पल्टुआ गरियाया जायेगा 
फुलमतिया भाग निकलेगी घर की ओर

थर्मोडायनेमिक ऐरो ऑफ़ टाइम बताता है
भैंस के पेट में पहुँच गया लोबिया
अव्यवस्था से व्यवस्था की ओर गमन है
घटती लगती है एंट्रोपी
पर यह अनर्थ है,
चबाने में भैंस ने खर्च की जो ऊर्जा
बढ़ा देती है वह ब्रह्माण्ड की सकल एंट्रोपी
अर्थात अव्यवस्था !

यानी की बढ़ रहा है सब कुछ
व्यवस्था से अव्यवस्था की ओर
सतत अबाधित
और मैं जितना समझ पाता हूँ इस मामले में
भैंस भी करती है प्रभावित ब्रह्माण्ड को
उतना ही जितना कि स्टीफन हाकिंग .

Sunday, August 21, 2011

एक बरसाती रात

रात आई बहुत देर तक याद तू 
रात बादल गरजते रहे देर तक
रात आँखों में चुभती रही रौशनी 
रात जुगनू चमकते रहे देर तक

रात आंधी चली रात बिजली गिरी
जाने किसके भला आशियाने जले 
ख़त मिला था तेरा कल ढली सांझ को
और तेरे ही ख़त सब पुराने जले

रात बजती रही धुन कोई अनसुनी  
रात वादे कसकते रहे देर तक

रात मैंने किये पुण्य संकल्प सब
प्रिय सुनो यह सभी अब तुम्हारे हुए
रात मैंने लिखी एक ताज़ा ग़ज़ल 
तन को जीते हुए मन को हारे हुए

रात बीते बरस आँख की कोर से 
धीरे-धीरे छलकते रहे देर तक

रात आये न जाने कहाँ से भला
और बादल उड़ाकर कहाँ ले गए  
चढ़ते सूरज की पावन गवाही में जो 
स्वप्न आँखों में अपनी संभाले गए

रात उठती रही देर तक गंध भी 
रात सपने महकते रहे देर तक