Sunday, May 27, 2012

ये उदासियाँ

ये उदासियाँ भी मेरे ही हिस्से आनी थीं
कि जैसे आती है
रात भर जागी हुई आँखों में नींद
और गंधाते पानी में मछलियों को सांस
बस जी लेने भर

उदास होना जीवित होना है
रोज़मर्रा की लंगडी दौड में
कि खराब होना अब भी खराब है
और गलत बिलकुल उतना ही गलत
न ज्यादा न कम सांस भर

उदासी आइना है
और सबूत भी
जीवित होने का.