Friday, April 22, 2011

तुम्हारे बिन अकेला तो हूँ.......

अक्सर चुपचाप सांझ के धुंधलके में
जोर से लेता हूँ सांस
हवा की महक बता देती है
तुम्हे छुआ है उसने

एक-एक कर टूटते पत्ते 
गिरते हैं धरती के आँचल पर आहिस्ता 
रात कदम-दर-कदम  चलती 
आती है ओढ़े ख़ामोशी 
और मुझे कभी तुम दीखती हो 
कभी सूरज की बुझती-सी लाली

कभी लगता है चुपचाप छू लूँ सरकता दिन  
कभी चूम लूँ सूरज की ललछौही किरण
कभी खोल दूँ कसकता पुरातन मन 
अपने ही सामने एकाएक 
और अचकचा कर ले बैठूं तुम्हारा नाम 

किसी मस्जिद से उभरती अजान 
किसी मंदिर से फूटता आरती का स्वर
शायद तुम्हीं ने कुछ कहा है 
दिशाओं को सुनाकर.
दूर किसी घाटी से उठता धुआँ 
बढ़ता है ऊपर छूने आकाश 
या है मन का ही कोई नाज़ुक-सा ख्याल 
झरनों की कलकल -झरझर है या फिर 
उमगते मन का मासूम सवाल

मैं जान नहीं पाता
कुछ भी पहचान नहीं पाता
कुछ ऐसे ही जैसे
झप से गुजर जाए कोई उड़ता पाखी
झम से बिखर जाए कोई सांवला बादल
या फिर
आते-आते रह जाए होठों  पर
गीत गोविन्द की एक पंक्ति 

तुम्हारे बिन अकेला तो हूँ
पर तुम हो 
कहीं  दूर ही सही , एहसास भी है .




Wednesday, April 13, 2011

पाखी वाला गीत

पाखी वाला गीत अकेले जब-जब गाया
आकुल मन की विह्वलता में तुमको पाया

 नाव किनारे से ज्यों छूटी 
टूटी नींद नदी के जल की 
हलकी-हलकी लाल किरण का 
आँचल ओढ़े संध्या ढलकी 
बनती-मिटती लहरें मन की प्रतिच्छाया  .

बूढ़ा सूरज चलकर दिनभर 
किरणों की गठरी कंधे पर
धीरे-धीरे पार क्षितिज के 
लौट रहा थककर अपने घर 
सुबह का भूला भटका, शाम हुई  घर आया .  

Monday, April 11, 2011

अब न आदत रही....

अब न आदत रही गुनगुनाने की वह
मुझसे लिखने का सारा हुनर ले गयी 
कल झुका कर नज़र रो पड़ी  और फिर
मेरे सपनों की पूरी उमर ले गयी  

     उसने वादे किये मुझसे झूठे अगर 
     उसकी अपनी रही होंगी मजबूरियां 
     कौन चाहेगा ऐसे भला उम्र भर 
     ढोते रहना कसक टीस बेचैनियाँ

वह बुरी  तो नहीं थी  मगर भूल से
एक मासूम पंछी के पर ले गयी 

     हर कोई चाहता है सुखी ज़िन्दगी 
     चाह उसने भी की कुछ गलत तो नहीं
     बात चुनने की थी सो चुना बुद्धि से  
     प्यार बदले ख़ुशी कुछ गलत तो नहीं

और भी थे चयन के लिए रास्ते
किन्तु बेचैनियों का सफ़र ले गयी 

     कसके मुट्ठी में बाँधी हुई रौशनी 
     राह रोशन करे यह जरूरी नहीं
     देश का था ये विस्तार जो नप गया
     पाँव नापे जिसे मन की दूरी नहीं 

टिमटिमाते दियों की मधुर आस पर
वह अँधेरे सभी अपने घर ले गयी .