Saturday, July 23, 2011

बरसो सावन बरसो

बरसो सावन बरसो

गोबर की परधानी भीगे
काली कुतिया कानी भीगे
इटली की महारानी भीगे
आँख का उनकी पानी भीगे
बरसो सावन बरसो

मनमोहन और अन्ना भीगें
खाकी लाल घुटन्ना भीगें
लोकपाल कंधे पर धरके
नाचें तन्ना-तन्ना भीगें
बरसो सावन बरसो

खाएं प्रिंस पकोड़ा भीगें
हसन अली के घोडा भीगें
राजा और यदियुरप्पा से कुछ  
बचे-खुचे तो कौडा  भीगें
बरसो सावन बरसो

जनपथ भीगे संसद भीगे
इजलासों का गुम्बद भीगे
छाती पर चढ़कर बैठी  जो
काठ की कुर्सी शायद भीगे
बरसो सावन बरसो
बरसो सावन बरसो




Wednesday, July 20, 2011

सावन के मेघ

जाने किसकी आँखें उमड़ीं
नभ में छाए काले मेघ
किस विरही के भेजे आए
क्या संदेश संभाले मेघ

     तन की पाती मन के नाम
     भूला-बिसरा कोई काम
     याद दिलाने को आयी है
     फिर सावन की भीगी शाम

बरस रहे हैं धो डालेंगे
विस्मृतियों के जाले मेघ ।

Friday, July 15, 2011

जीवधारी रुपए

गाड़े हुए रुपए जीवधारी हो जाते हैं
एक लंबे समय के बाद
एक लंबे समय पहले सुनी थी यह बात
दादी से किसी कहानी के दरम्यान

लंबे समय पहले की बातें
सच ही हो जाती हैं
लंबे समय के बाद

अब नहीं गाड़ता है कोई भी
रुपए दीवार या ज़मीन में
यह तमाम जीवधारी रुपए
डोलते फिरते हैं जो
राजपथ-जनपथ-संसद के गलियारों में
पुराने दिनों के गाड़े हुए हैं

कहानियाँ दादी की थीं
दादी कहानियों में चली गईं
लंबा समय अब लंबा नहीं रहा
जीवधारी रुपए अब लौटाने ही होंगे
अपने गड्ढों में लंबे समय के बाद
संभलने लगी हैं कुदालें
कसमसाने लगे हैं उनके बेंट
और ज़मीनें तैयार होने लगी हैं ।

Tuesday, July 5, 2011

तुमको बात बदलते देखा

हमने सूरज ढलते देखा
सुबहो-शाम पिघलते देखा

घर से माँ का ख़त आया है
आँखें मलते-मलते देखा

इस सावन में घर जाऊंगा
सपना चलते-चलते देखा

देखी होगी राह किसी ने
दोपहरी को गलते देखा

मन जाने कैसा हो आया
तुमको बात बदलते देखा

तुम भी अपने-से लगते हो
तुमको भी मन छलते देखा

शायद फागुन आने वाला
मन को आज फिसलते देखा

आज किसी ने सच बोला है
पत्थर आज सँभलते देखा