Wednesday, July 20, 2011

सावन के मेघ

जाने किसकी आँखें उमड़ीं
नभ में छाए काले मेघ
किस विरही के भेजे आए
क्या संदेश संभाले मेघ

     तन की पाती मन के नाम
     भूला-बिसरा कोई काम
     याद दिलाने को आयी है
     फिर सावन की भीगी शाम

बरस रहे हैं धो डालेंगे
विस्मृतियों के जाले मेघ ।

3 comments:

  1. मेघ, सावन, आँखें ... ये ऐसे सिम्बल हैं जिनसे कोइ भी रचना खूबसूरत बन जाती है.. ऐसे में आपका ब्यान तो सावन को और भी खुशगवार बना देता है...

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  2. फिर सावन की वो भीगी शाम.....

    फलक पर कई दृश्य संजो देती है ये पंक्ति ...... कसम से.

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