जाने किसकी आँखें उमड़ीं
नभ में छाए काले मेघ
किस विरही के भेजे आए
क्या संदेश संभाले मेघ
तन की पाती मन के नाम
भूला-बिसरा कोई काम
याद दिलाने को आयी है
फिर सावन की भीगी शाम
बरस रहे हैं धो डालेंगे
विस्मृतियों के जाले मेघ ।
Wednesday, July 20, 2011
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मेघ, सावन, आँखें ... ये ऐसे सिम्बल हैं जिनसे कोइ भी रचना खूबसूरत बन जाती है.. ऐसे में आपका ब्यान तो सावन को और भी खुशगवार बना देता है...
ReplyDeleteगरजे घटा घनघोर ....
ReplyDeleteफिर सावन की वो भीगी शाम.....
ReplyDeleteफलक पर कई दृश्य संजो देती है ये पंक्ति ...... कसम से.