Monday, June 25, 2012

रोटियां

तवे से उतरती रोटियां
चली नहीं जाती हैं अपने-आप
वहां जहां कि होती है भूख

बहुत मायने रखता है
उन हाथों का हुनर
जो तय करते हैं
भूख से रोटी का रिश्ता
और अनुपात भी

रोटी केवल भूख के लिए नहीं होती
नहीं होती जैसे कि ज़मीन
केवल रहने के लिए
या कि नहीं होता पानी
केवल पानी भर बनकर
सबके लिए
ज़रूरतों से तय नहीं होते
संभावनाओं के समीकरण उलझे हुए

वे हमेशा देवता ही रहते हैं
जो छिपाकर रख लेते हैं आग
रोटियां औज़ार हैं
जिनसे खुलते हैं सत्ताओं के जटिल समीकरण
महत्वाकांक्षाओं की शतरंजी बिसात पर .

Friday, June 1, 2012

तुम्हारा लौटाता हूँ प्यार

चलो तुम भूल गए सर्वस्व
मगर इतना तो होगा याद
बढ़ाकर मैंने अपना हाथ
सजाया था माथे पर चाँद

झपकना पलकों का तुम भूल
देखती रही थीं मेरी ओर
हुई आँखों-आँखों में बात
और कस गयी स्नेह की डोर

तुम्हारे नयनों से संवाद
मिली मन को मन की सौगात
फिसलती जाए पकड़ी डोर
संभाले नहीं संभलता गात

चले थे दो ही पग हम साथ
हो गयीं अपनी राहें दूर
किया है तुमने तो स्वीकार
मुझे पर हो कैसे  मंजूर

दिया है तुमने तो दिल खोल
लिया ही गया न मुझसे भार
ह्रदय में कसके जो वह टीस
नयन को आंसू का उपहार

मेरे कंधे पर रखकर शीश
दिया था तुमने ही  अधिकार
अधर से लिख देने का मीत
तुम्हारे अधरों पर निज प्यार

नहीं माना तुमको है याद
किया था तुमने मुझसे प्यार
कभी भीगी आँखों की कोर
रचा था सपनों का संसार

मगर मैं कैसे जाऊं भूल
मेरे जो जीवन का आधार
जहाँ स्थित मेरा अस्तित्व
करूँ कैसे उससे इनकार

कथा जो रही अधूरी आज
करूँ पूरी वह मेरी चाह
छिपाए रख न सकूँ अब और
अधर के मुस्काने में आह

रहो खुश तुमको मेरे दोस्त
समर्पित है मेरा उपहार
विदा की घड़ी तुम्हें लो आज
तुम्हारा लौटाता हूँ प्यार .