Saturday, June 22, 2013

कैसा गीत सुनाऊं

तुम्हीं बताओ आज तुम्हें मैं कैसा गीत सुनाऊं
अपने मन की बात कहूँ या जग की रीत सुनाऊं

कुछ ऐसा जो हँसी बिखेरे या आंसू बरसाए
कुछ यौवन की रंगरलियाँ या फिर बचपन के साए
बीते दिन जो लाया करतीं किरणों वाली परियां
या आगत का अनजाना पल जिसने स्वप्न दिखाए

सब कुछ हार गया मैं जिसमें ऐसी जीत सुनाऊं

गाऊं मैं हेमंत शिशिर या सावन की बरसातें
जेठ की जलती दोपहरी या भादों वाली रातें
क्या वसंत की मादकता या धरती की अंगड़ाई
या फिर गीतों में मैं ढालूं फागुन वाली बातें

गिनने को जो दिन दे जाए ऐसी प्रीत सुनाऊं

इस दुनिया से दूर की बातें या जग की सच्चाई
भीड़ में खोया जीवन या कि मुट्ठी भर तन्हाई
संबंधों के बंधन या फिर आवारा आज़ादी
या वो आँचल तुम्हें सुनाऊं जिसमें धरा समाई

मुझको गीत बनाया जिसने वो मनमीत सुनाऊं
तुम्हीं बताओ आज तुम्हें मैं कैसा गीत सुनाऊं 

Friday, June 14, 2013

कुछ ग़ज़ल जैसा

धुएं  की लकीर हवा में ठहरती कब तक
ज़िन्दगी दौर से ऐसे गुजरती कब तक

सुबह छुपा क्यों न लेती कोहरे में मुंह
बर्फ-सी धूप में आखिर सिहरती कब तक

अँधेरा घिर गया ! घिरना था , क्या हुआ
पकी-सी धूप मुंडेरी पे ठहरती कब तक

एक तू ही नहीं राह में और भी थे कई
मंजिल तेरा इंतज़ार और करती कब तक

सो गयी थककर तुझे आंखों में लिए
कोई रात जुगनुओं से संवरती कब तक

आज खुल ही गयी आखिर अपनी हक़ीकत
हँसी उधार की चेहरे पे उतरती कब तक   

Tuesday, June 11, 2013

सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !

सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !

बादल बरसे धरती हरसे
पत्ता-पत्ता जीवन सरसे
तन मेरा भी भीगे लेकिन
मन पपिहे-सा टेर लगाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !

चंचल पलकें ढलकी अलकें
जिन अधरों से अमृत छलके
छू साँसों से अर्घ्य समर्पित
उनको देवि ! नहीं कर पाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !

पास बिठाऊँ गीत सुनाऊँ
मन की बातें कहता जाऊं
चाहा है कई बार मगर फिर
मौन न जाने क्यों रह जाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता

नयन भिगोते आस पिरोते
संग तुम्हारे हँसते-रोते
दिन जीवन के कट जाते पर
स्वप्न भोर का मन कसकाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !