Thursday, October 27, 2011

हमारे प्रेम का शहर

न उस शहर मे अब तुम रहती हो
न उस शहर मे अब मै रहता हूँ

पर हम दोनो ही के पास है
अपने-अपने हिस्से का वह शहर
जो कहीँ भी बस जाता है
आपस मे बात करते ही.


यह और बात है कि
प्रेम करने से होने तक की खबर
क़त्ल की कहानियो के साथ छपती थी
हमारे शहर के अखबार मे
रास्ते किनारे पेड पर अटकी लाल रिबन-सी याद
हवाओ मे फडफडाती अब भी है
समय के साथ बदरंग होकर भी.


शहर बदलता है और लोग भी

गली-मोहल्लो-चौराहो की सूरत के साथ

मगर ज़िन्दा रहता है एक शहर
हमारे-तुम्हारे भीतर बचे प्रेम-सा

बिल्कुल वैसा ही मन के किसी कोने मे

जैसा देखा था हमने उसे एक-दूसरे के प्रेम मे.

7 comments:

  1. क्योंकि कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं।

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  2. साथ ही चलता है, साथ ही रहता है, जीवंत नगर!

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  3. न उस शहर में....बात करते ही।
    ..यह अंश बहुत ही अच्छा लगा।

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  4. bahut sundar bhav achhe lage ......

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना जो बेहद अपनी सी लगी...
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_27.html

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  6. kavita bahut achhi lagi .

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