दुनिया को मुहब्बत का उपदेश देने वालो ,
तुम देहरी पर ठिठक कर लौट आए
और पीट दिया ढिंढोरा--
सब पा लिया आदि-अंत अनंत का !
उपलब्धि की कसौटी पर कसा और
लटका लिया पदक-सा गले में.
मुहब्बत कोई कैजुअल लीव नहीं
जो ली और फिल्म देख आये
या फिर पुराने किले की सुनसान ढलानों पर
घड़ी-दो घड़ी लेटे लौट आए
मुहब्बत हंसिये की मूठ पर चमकता पसीना है
जिसे जेठ के तमतमाए सूरज ने देखा
और खौफ खा गया.
मुहब्बत न राम की मर्यादा है
न लक्ष्मण की भ्रातृनिष्ठा
और न ही रघुकुल की तथाकथित रीति
मुहब्बत सीता की अग्निपरीक्षा है
अविश्वासी को जिसने युगों का बनवास दिया.
मुहब्बत अर्जुन का गांडीव नहीं
कृष्ण का सुदर्शन चक्र भी नहीं
मुहब्बत रथ का वह टूटा हुआ पहिया हैमान-मर्दन किया महारथियों का जिसने
युगों के लिए उन्हें श्रीहीन कर दिया .
मुहब्बत न यह धरती है न ये सरहदें
न गोलियां, न टैंक, न कंटीली बाड़ें
मुहब्बत फौजी के उस बूढ़े बाप का कलेजा है
जो कहता है-- काश मेरा एक और बेटा होता !
मुहब्बत न गीता है, न बाइबिल, न कुरान
न मंदिर की आरती है न मस्जिद की अजान
मुहब्बत वह धूप है
जो दोनों की सहन में बराबर उतरती है
मुहब्बत वह हवा है
जो दोनों की धूल बराबर बुहारती है.
दुनिया को मुहब्बत का उपदेश देनेवालो !
मुहब्बत वह बारिश है
जो सबका रंग-रोगन धो देती है
और नंगा कर देती है
पाखण्ड के ढांचों को
देह की दीवार को
परम्पराओं को , किताबों को
सिद्धांत के खांचों को.
इस रवानी में.. एक भी शब्द अपनी ओर से जोड़ना बेमानी है
ReplyDeleteमुहब्बत को दैवीयता से भी बड़ा मिथकीय रूप दे दिया आपने -जैसे यह निगोड़ी न हुयी!
ReplyDeleteप्रोफ़ैसर साहब,
ReplyDeleteखुद को कसौटी पर कसा तो यही जाना,
कि अभी इसको कुछ नहीं जाना।
रजनीकांत जी,
ReplyDeleteआज कुछ नहीं... awesomeness at its acme!!!
अद्भुत!!