Tuesday, June 14, 2011

आँखें

स्वप्न भरी सपनीली आँखें
पिघला अंतस गीली आँखें

मन के भावों की दर्पण हैं
भाव भरी चमकीली आँखें

माँ के आँचल  की छाँव तले
वे खुले अधर गर्वीली आँखें

किसी राम का इंतज़ार है
राह  तकें   पथरीली आँखें

चौखट पर  अगवानी करतीं
शबनम-सी शर्मीली आँखें

फिर आँखों से बात करेंगी
अधरों  वाली नीली आँखें

शाम की दुल्हन गेसू खोले
मय के बिना नशीली आँखें

जिस्म अगर दरिया है तो फिर
लहर कोई लहरीली आँखें

टूट रहे संबंधों का युग
रिश्तों-सी बर्फीली आँखें

स्वप्न देखती हैं उधार के
भूखी-प्यासी-पीली आँखें




7 comments:

  1. मन की टीस जता देती हैं,
    सूखी आँखे, गीली आँखें।

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  2. ऐसी वैसी कैसी कैसी आँखें -खूब!

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  3. लाजवाब अनुज!
    साहिर साहब ने भी कहा था आज के माहौल पर..
    उस मुल्क की सरहद को कोइ छू नहीं सकता.
    जिस मुल्क की सरहद के निगेबान हैं आँखें!

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  4. लाज़वाब गज़ल...हरेक शेर दिल को छू जाता है...

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  5. chhoti bahar acche ashaar nikale hain aapne... pathrili aankhen aur adharon wali aankhen...ye share bataure khaas pasand aaye...

    shukriya

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