स्वप्न भरी सपनीली आँखें
पिघला अंतस गीली आँखें
मन के भावों की दर्पण हैं
भाव भरी चमकीली आँखें
माँ के आँचल की छाँव तले
वे खुले अधर गर्वीली आँखें
किसी राम का इंतज़ार है
राह तकें पथरीली आँखें
चौखट पर अगवानी करतीं
शबनम-सी शर्मीली आँखें
फिर आँखों से बात करेंगी
अधरों वाली नीली आँखें
शाम की दुल्हन गेसू खोले
मय के बिना नशीली आँखें
जिस्म अगर दरिया है तो फिर
लहर कोई लहरीली आँखें
टूट रहे संबंधों का युग
रिश्तों-सी बर्फीली आँखें
स्वप्न देखती हैं उधार के
भूखी-प्यासी-पीली आँखें
great dada... kya mast likha hai :)
ReplyDeleteमन की टीस जता देती हैं,
ReplyDeleteसूखी आँखे, गीली आँखें।
ऐसी वैसी कैसी कैसी आँखें -खूब!
ReplyDeleteलाजवाब अनुज!
ReplyDeleteसाहिर साहब ने भी कहा था आज के माहौल पर..
उस मुल्क की सरहद को कोइ छू नहीं सकता.
जिस मुल्क की सरहद के निगेबान हैं आँखें!
lajwab rachana...badhiya
ReplyDeleteलाज़वाब गज़ल...हरेक शेर दिल को छू जाता है...
ReplyDeletechhoti bahar acche ashaar nikale hain aapne... pathrili aankhen aur adharon wali aankhen...ye share bataure khaas pasand aaye...
ReplyDeleteshukriya