Friday, June 10, 2011

...बो दिए हैं

बो दिए हैं
इस बरस
बरसात से पहले कहीं
सबकी नज़र से दूर
छिछली पोखरी के पास
मैंने आम  के दो बीज

अंकुरित होंगे कभी जब
आँख खोलेगा अनंत
फूट निकलेगी नदी
अनजान ऊर्जा से भरी
जैसे कि फूटा मन
तुम्हारा साथ पाकर मीत

मन में उठ रही है बात
आधी रात
जब अठखेलियाँ करने लगा है चाँद
जल में पोखरी के
रह गयी है पास मेरे
प्रिय तुम्हारी चीज

आम का हो बीज
या कि प्रिय तुम्हारी चीज
दोनों ही मुझे करते
कहीं भीतर बहुत परिपूर्ण
जैसे भर गयी जल से लबालब
पोखरी बरसात में.





6 comments:

  1. :) कुछ तो है जरुर जो फंसा रह गया है नर्व तन्तुओं में...निकल नहीं पाया कभी ...

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  2. पंडित जी(डॉ. मिश्र) की बात मेरे दिल से भी निकली.. सिर्फ कोइ चीज़ और कोइ बीज ही रोपित न हुआ होगा,एक फांस भी रही होगी. अनुज भावों का यह रेला देख रहा हूँ किसी और ही डगर पर चल पड़ा है!!

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  3. कल रात से तीन बार आ चुका हूँ और कमेंट करने में खुद को बेबस पा रहा हूँ। प्रोफ़ैसर साहब, पोखरी लबालब रहे हमेशा।

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  4. आम का वो बीच या प्रिय तुम्हारी चीज ...
    भीतर की परिपूर्णता ही मतलब रखती है ...

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