Tuesday, October 26, 2010

पंडित दुखन्ती प्रसाद मिसिर

एक बार फिर
पंडित दुखन्ती प्रसाद मिसिर
चौन्हिया गए हैं
नियॉन लाईट की रौशनी में
चौकी पर चन्दन रगड़ते हैं
आप-से-आप बडबडाते हैं- झगड़ते हैं--
आग लगे ज़माने को
खाने को कुल सात अनाज
तेईस साबुन नहाने को
हे भगवान, धरम नहीं रहेगा
पुण्य, परताप , मरम नहीं रहेगा
कहीं एम एन सी है, कहीं टी एन सी है
 सब फारेन की कम्पनी हैं
न कजरी न चैता बस पाप , रैप , सिम्फनी है.

रामनरैना का बेटा
बडके से छोटा
इंग्लिश गाना पर कमर मटकाता है
जैसे मिर्गी का मरीज छपटियाता है
पहले दिन जब टांग लकडियाकर कमर हिलाया
लगा अब गिरा अब ढिमलाया
मिसिर जी अपना सब काम छोड़े
चमरौंधा लेकर दौड़े
वह समझा मारेंगे
पीपलवाला भूत झारेंगे
सो सर पर पैर रखकर भागा
शोरगुल से रामनरैना जागा
बोला-' काका क्या करते हैं
बच्चों के मुंह लगते हैं
यही उम्र है खेलने-खाने की
नाचने-कूदने-मौज उड़ाने की
अरे, नाचना भी एक कला है
गो आपके लिए बला है
नाचता है नाचने दीजिए
अपनी किस्मत का लेखा बांचने दीजिए
क्या पता माइकल जैक्सन बन जाये
दुनिया भर का अटरैक्शन बन जाये
न भी बना तो गम नहीं
पत्नी की उंगली पर नाचने का हुनर होगा
यह भी कुछ कम नहीं'
मिसिर जी ने ठोंके करम
न हाँ, न हूँ , न खुशी, न गम
समझ नहीं पाए
गीता पढ़ें या रामायण बांचें
या टेप बजाकर वह भी नाचें.

पंडित दुखन्ती प्रसाद मिसिर
पीड़ा से, क्रोध से सिर हिलाते हैं
अनामिका से चन्दन मिलाते हैं
भीतर बहुत कुछ धुंधुआ रहा है
कुछ होंठों पर झाग बनता है
कुछ शब्दों में कढा आ रहा है--
'पुरखों का पेशा है निभा रहे हैं
लोग समझते हैं जजमानी है
तर माल उडा रहे हैं
कौन रोज कथा कहवाता है
दसवें-पन्द्रहवें सतनारायण को
दस-पांच रुपया चढ जाता है
शादी-ब्याह का मौसम
कौन सा साल भर रहता है
जग्य-भागवत का सोता भी
कहाँ साल भर बहता है
सात परानी का खर्चा है
आना-जाना, मर-मरजाद , तीज-त्यौहार
ऊपर से कर्जा है
दान में मिली होगी
दो बीघे खेती है
बिना खाद पानी के
दो मन अनाज भी नहीं देती है.

ब्राह्मण का संस्कार, ब्राह्मण की मर्यादा
यह पाठ बचपन से पढ़े हैं
हम ब्राह्मण हैं ब्रह्मा के मुख से कढे हैं
वेद-पुराण-उपनिषद हमारी थाती हैं
ज्ञान के दीपक में हम ही बाती हैं
हम सभ्यता को रास्ता दिखाए
आदमी को इंसान बनाये
समाज को नियम दिए
राग-व्रत-योग-संयम दिए
बचपन से कूट-कूट कर भरा है
क्या खोटा है-क्या खरा है
समझ नहीं आता गलत कौन है
सब वेद-पुराण मौन हैं
हर पेशा की उन्नति के लिए
लोन है, सरकारी योजना है
नए युग का दंड
खाली हमीं लोगों को भोगना है ?
 अच्छा हो सरकार कानून बना दे--
कोई भगवान नहीं है
कोई धरम नहीं रहेगा
पुरोहिताई आजीविका है
यह भरम तो नहीं रहेगा
भगवान की दलाली से
लाला की दलाली अच्छी है
कम-से-कम दो वक्त की रोटी तो मिलती है.'

मिसिर जी अभी और धुंधुआते
अगर राम लुटावन यादव न आ जाते
राम लुटावन बोले-
बाबा पालागी, तनिक पत्रा खोलिए
हमारे पोता हुआ है
उसका ग्रह- नछत्तर तौलिए--
घरी भर रात गयी होगी
अंजोरिया अभी उगी नहीं थी.

मिसिर जी चन्दन-टीका भूल गए
आस-हिंडोले झूल गए--
चार पैसे का काम हुआ
माँ  की दवाई का इंतजाम हुआ.







7 comments:

  1. बहुत बढ़िया! जाने क्यों इसे पढ़कर आकाशवाणी पटना पर आनेवाला एक रेडियो नाटक याद आ गया। रामेश्वर सिंह कश्यप का भोजपुरी नाटक लोहा सिंह। दुखन्ती प्रसाद मिसिर भी तो तेज़ी से बदलते परिवेश को देखकर उतने ही परेशान हैं!

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  2. मुझे निराला के बिल्लेसुर बकरिहा याद आ गए। गाँव का पुरोहित भी सर्वहारा ही होता है। उसे अब बकरिहा बाबा की तरह ही विद्रोह करने की आवश्यकता है।

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  3. रजनी कान्त जी
    !...बहुत कुछ कह डाला आपने ....बेचारा पुरोहित ...आज वास्तव में बेचारा रह गया |

    ....बहरहाल आप भी कहीं पुरोहिती और कर्मकांड के पुनः प्रतिष्ठा के दोषी ना ठहरा दिए जाएँ ?
    होशियार ...खबरदार !

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  4. साइडबार में भूमियाखेड़ा का लिंक सही नहीं है .....यू आर एल में स्पेस हो गया है ...सही कर दें !

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  5. रजनी कांत जी, आज अपना बोली में, आपका कबिता के अंदर जो दर्द देखाई दिया है, हम उसको कबिता के साथ साथ भासा के मरम को समझकर अपना दिल से महसूस कर रहे हैं… हमरा एगो बेरोजगार पड़ोसी एक बार हमसे एही बोला था कि जानते हैं भैया पढलिखकर बरबाद हो गए, नहीं पढते त कम से कम रेक्सा चलाकर पेट भर लेते. पढाई करने के बाद त ऊहो छिना गया हमसे. मिसिर जी का दरद अऊर जादब जी के आने से पैदा ललक भी बेदना का दृस्य उपस्थित करता है. मन भर गया आज!! जी जुड़ा गया!!!

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  6. लगा जैसे किसी दुखती रंग पर हाथ पड़ गया हो -यह है कविता !
    कविता बेलौस होती है -किसी को नहीं बख्सती ...मगर सुरसरि सम सबकर हित होई का भी मन रखती है .
    जोरदार !

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  7. मिसिर जी अभी और धुंधुआते
    अगर राम लुटावन यादव न आ जाते
    राम लुटावन बोले-
    बाबा पालागी, तनिक पत्रा खोलिए
    हमारे पोता हुआ है
    उसका ग्रह- नछत्तर तौलिए--
    घरी भर रात गयी होगी
    अंजोरिया अभी उगी नहीं थी.

    मिसिर जी चन्दन-टीका भूल गए
    आस-हिंडोले झूल गए--
    चार पैसे का काम हुआ
    माँ की दवाई का इंतजाम हुआ.

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