Thursday, June 24, 2010

पढ़ना-लिखना सीखो , ऐ मेहनत करनेवालो

अटारियों में अटकी रोशनी की किरण
सरकने लगी है
सरकंडे की छाजन के नीचे
काली पट्टियों पर दूधिया रेखाएं बनाने.

खड्डी   खटकाते  हाथ
लिखने लगे हैं
जूठन सहेजती आँखों की भाषा
लोकतंत्र के मुखपृष्ठ पर .

अंगूठे की रेखाओं का
कमला, विमला या रामप्रसाद हो जाना
प्रस्तावना है
एक नए संविधान की ,
धाराओं, अनुच्छेदों की जकड से मुक्त
गुलाबी खम्बों के बाहर भी अस्तित्व है जिसका.

पथरायी अँगुलियों
धुंधलाई आँखों
लिखा-पढ़ा हर अक्षर
घोषणापत्र है
उस नयी सुबह का
जो धूप बाँटने से पहले
कुल, जाति या धर्म नहीं पूछती.  

( दूरदर्शन पर साक्षरता सम्बन्धी एक विज्ञापन देखकर )

5 comments:

  1. bahut hi achhi kavita. bahut din bad koi is star ki kavita padhane ko mili. vadhai.

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  2. बहुत बेहतरीन पोस्ट...."

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  3. भासा का सुंदरता के साथ साथ भाव का अभिव्यक्ति भी बेजोड़ है...लयबद्धता देखकर त ताज्जुब होता है...मजा आ गया..

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  4. आशा करना, धरना और व्यक्त करना अच्छी बात है। अच्छी बातें बातें ही रह जाती हैं। अंगूठा लगाएँ या 'रामपरसाद' लिखें रामप्रसाद को पता है कि राम जी के प्रसाद उसके लिए नहीं हैं। अजीब बात यह है कि रामप्रसाद के लिए यह साधारण सी, आम सी बात है जिसको बस मान लेना होता है।

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