Saturday, June 12, 2010

दोस्ती देने का नाम है -- तुमने कहा था


स्वप्न पलकों पर तिरा करते थे जो अक्सर ,
कदम थके-थके जो
बहक-बहक जाते थे
मुड़ने के लिए चलते-चलते,
पुरवा पवन वह ओस-भीगी
सिहरा जाती थी सीला मन जो,
रीत गये सभी
कहो तो क्यों !!

सिर पटक-पटक
जाती है बिखर लहर ,
फूट-फूट जाते हैं
इस पहाड़ी नदी के बुल्ले
कुछ देर कुलबुलाकर ,
देर तक पकड़ने की कोशिश
किया करती थीं तुम जिन्हें.

सांझ के पाखी लौटते तो हैं घर
झुण्ड-के-झुण्ड
पंख फडकाते पंक्तिबद्ध ,
पर लय खो-सी गयी लगती है.

पोखरी का जल ,
जिसे चुपचाप  भरते थे
अंजुरी में हर शाम हम-तुम ,
हो गया है गंभीर
कुछ  अधिक ही गंभीर ,
सूरज ढलने के बाद
हिल नहीं पड़ता है अक्सर
किसी  के मुस्कुरा भर देने से .

सर्ग शाकुंतलम के सभी
बांचे थे हमने एक साथ
छाँव में जिसकी ,
अमोला अल्हड वह अमलताश का
झूम नहीं उठता है अक्सर बेबात ही.

पढ़ ली होंगी तुमने कुछ किताबें और
सीख लिए होंगे कुछ और
तीन-पांच के धंधे ,
बढ़ गयी हो चमक आँखों की
नामुमकिन नहीं.
मुमकिन है, मिल गया हो
कन्धा कोई
रो लेने को सभी  दुःख ,
भोगे-अनभोगे यथार्थ के.

फिर भी सच यही है कि
तुमने की थी  दोस्ती मुझसे
और एक शाम यूँ ही
भाग्य-रेखा को मेरी
गोदते हुए दूब  की डंठल से
कह दिया था तुमने --
दोस्ती देने का नाम है.

लिया तो तुमने भी कुछ नहीं ,
मैं रिक्त हूँ
पर यह भी सत्य है .   

7 comments:

  1. waah adbhut rachna hai antim ki panktiya to kahar dhaa rahi hain..lajawaab

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  2. आह ,कितना कुछ कह दिया है , लिया दिया कुछ भी नहीं , ये कहने की बात है , वो जो साथ चला आ रहा है , जो कविता के माध्यम से आज बाहर निकला है ...उसे क्या कहते हैं ? कविता सहज ही बहती हुई धारा सी लगी , सुन्दर ।

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  3. सचमुच जीकर लिखी है कविता

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  4. "लिया तो तुमने भी कुछ नहीं ,
    मैं रिक्त हूँ
    पर यह भी सत्य है ."
    कमाल के शब्द लिख दिये हैं कांत साहब।
    आपबीती जैसे ज्यों की त्यों रख दी है।

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  5. "लिया तो तुमने भी कुछ नहीं ,
    मैं रिक्त हूँ
    पर यह भी सत्य है . "

    शायद रिक्त होना ही नियति थी इसलिये ।
    अच्छी लगी कविता ।

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  6. अमाँ इत्ता प्रवाह कहाँ से लाते हो ?
    यह लय तो जानी पहचानी लग रही है।

    पूरा ओसौनी भर भर बिम्ब उड़ेल दिए हो महराज ! कुछ तो बचाए रखते !!

    सिर पटक-पटक
    जाती है बिखर लहर ,
    फूट-फूट जाते हैं
    इस पहाड़ी नदी के बुल्ले
    कुछ देर कुलबुलाकर

    सांझ के पाखी लौटते तो हैं घर
    झुण्ड-के-झुण्ड
    पंख फडकाते पंक्तिबद्ध ,
    पर लय खो-सी गयी

    पोखरी का जल ,

    हिल नहीं पड़ता है अक्सर
    किसी के मुस्कुरा भर देने से .

    अमोला अल्हड वह अमलताश का
    झूम नहीं उठता है अक्सर बेबात ही

    भाग्य-रेखा को मेरी
    गोदते हुए दूब की डंठल से
    कह दिया था तुमने --
    दोस्ती देने का नाम है.

    ____________

    @कह दिया था तुमने --
    दोस्ती देने का नाम है.

    लिया तो तुमने भी कुछ नहीं ,
    मैं रिक्त हूँ
    पर यह भी सत्य है .

    बहुत टूट कर चाहते थे उसे ?

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