चाहता हूँ मैं कि तुमको ख़ूबसूरत ख़त लिखूं
ख़त कि जिसमें मौन भी हो बात भी हो
ख़त कि जिसमें चाँद भी हो रात भी हो
ख़त कि जिसमें शबनमी सौगात भी हो
ख़त कि जिसमें स्नेह की बरसात भी हो
अनकहे किस्से भी हों कुछ अनछुए पल भी कुछेक
उम्र के इस मोड़ पर एक बचपनी हसरत लिखूं .
चाहता हूँ मैं कि तुमको ख़ूबसूरत ख़त लिखूं.
रेत के कच्चे घरोंदों-सा सजीला ख़त
गुलमुहर के फूल-सा कुछ लाल-पीला ख़त
याद की उतरन में संवरा तंग-ढीला ख़त
कोर पर आँखों की उभरा मन , पनीला ख़त
इस बरस बरसात में चमके हैं ढेरों इन्द्रधनु
छोर की ख्वाहिश में उलझा मौन मन आहत लिखूं .
चाहता हूँ मैं कि तुमको ख़ूबसूरत ख़त लिखूं
ख़त कि जैसे अधखिले फूल की एक पाँखुरी
ख़त कि जैसे जेठ में पुरुवाईओ की झुरझुरी
ख़त कि जैसे भोर में बज उठी हो बांसुरी
ख़त कि जैसे रामगिरि से आ मिली अलकापुरी
बादलों को दूत भेजा था कभी एक यक्ष ने
ऋतुमती ऋतुओं की अलकें बांध संयम-व्रत लिखूं.
चाहता हूँ मैं कि तुमको ख़ूबसूरत ख़त लिखूं
ख़त कि जिससे मौन-मंदिर में बजें कुछ घंटियाँ
ख़त कि जिससे धूममय हों कामना की वेदियाँ
ख़त कि जिससे गूँज जाएँ गीत-गोविन्द-पंक्तियाँ
ख़त कि जिससे पा सके कान्ह बिछुड़ी कनुप्रिया
एक लोटा जल सुबह सूरज को एक दिन भेंटकर
नाम इस सम्बन्ध का एकादशी का व्रत लिखूं
चाहता हूँ मैं कि तुमको खूबसूरत ख़त लिखूं .
Wednesday, June 30, 2010
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इतनी खूबसूरत चाहत से भरा खत, बस लिख ही डालिये। वैसे भी जिस खत में इतनी रुमानियत भरी हो, खूबसूरत तो हो ही जाना है।
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त पोस्ट।
बहुत रूमानी और खूबसूरत पोस्ट ..अगर सोचा है तो लिख डालिए जब लिखने का तसव्वुर इतना हसीं है तो ख़त भी कमाल होगा
ReplyDeleteभाई जी, जऊन खत को लिखने का मंसा एतना जबर्दस्त अऊर भावात्मक है, हमरे खयाल से ऊ खत में कुछ लिखने के लिए बाकिए नहीं रहेगा... लिफाफा देखकर उसको समझ में आ जाएगा कि मजमून क्या है...
ReplyDeleteबस केवल चाह कर मत रह जाइये....सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeletekhubsurat khat hai... likhiye janab
ReplyDeleteजब लिफ़ाफ़ा इतना सुन्दर है तो खत कैसा होगा?
ReplyDeleteवाह ………।एक बहुत ही सुन्दर मनभाती रचना………॥बधाई..........अब तो उस खत का इंतज़ार है.
नए से विधान मुग्ध कर गए:
ReplyDeleteउम्र के इस मोड़ पर एक बचपनी हसरत
याद की उतरन में संवरा तंग-ढीला ख़त
कोर पर आँखों की उभरा मन , पनीला ख़त
छोर की ख्वाहिश में उलझा मौन मन आहत
ऋतुमती ऋतुओं की अलकें बांध संयम-व्रत
ख़त कि जिससे धूममय हों कामना की वेदियाँ
ख़त कि जिससे गूँज जाएँ गीत-गोविन्द-पंक्तियाँ
नाम इस सम्बन्ध का एकादशी का व्रत लिखूं
चाहता हूँ मैं कि तुमको खूबसूरत ख़त लिखूं .
आप गुरु नहीं गुरुओं के गुरु हैं।
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
शब्द और भाव का दिलकश मिश्रण है आपकी रचना में...पढ़ते पढ़ते वाह वा के लिए बीच में रुक जाना पड़ता है...बेहतरीन...बधाई
ReplyDeleteनीरज
ओह ! खुल गया टिप्पणी बक्सा । नेट कनेक्शन की दिक्कत थी शायद ।
ReplyDeleteबार-बार पढ़ रहा हूँ यह कविता । घुल रही है यह अन्तर ।
यह तीन पंक्तियाँ तो अभिभूत कर गयी हैं -
"एक लोटा जल सुबह सूरज को एक दिन भेंटकर
नाम इस सम्बन्ध का एकादशी का व्रत लिखूं
चाहता हूँ मैं कि तुमको खूबसूरत ख़त लिखूं ".
wow!!!!
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