Wednesday, June 23, 2010

वही मैं हूँ - वही तुम हो

वही मैं हूँ
वही तुम हो
वही सुनसान सड़कें.

वही सोए हुए पत्ते
वही सीली हवाएं
वही नादान गुलमोहर
वही चुप-सी दिशाएँ
वही आकाश में चंदा
वही तारों की टिम-टिम
वही झींगुर की तानें
वही है ओस भी मद्धिम

 वही मैं हूँ
वही तुम हो
वही सुनसान सड़कें.

वही कुछ फूल-से किस्से
वही कुछ धूप-सी बातें
वही कुछ दीप-से वादे
वही कुछ गंध-सी साधें
वही चुप-चाप संग चलना
वही बेबात का हँसना
वही रुक देखना यूँ ही
वही मनना, मचल जाना

 वही मैं हूँ

वही तुम हो
वही सुनसान सड़कें.

वही किस्से पडोसी के
वही माँ की बीमारी
वही भाई की नादानी
वही अनजान लाचारी
वही इतिहास के चर्चे
वही फ़िल्मी ठहाके
वही संवाद नाटक-से
वही झुकना अदा से


वही मैं हूँ
वही तुम हो
मगर वर्षों की दूरी है

न वो साझा समंदर है
न वो पहले- सी  लहरें हैं
मेरे भी पांव में बंधन
और तुम पर भी तो पहरे हैं
कहीं मैं भी हिचकता हूँ
तो कुछ तुम भी छुपाते हो
न पूरा सच मैं कहता हूँ
न तुम ही सच बताते हो
वही सब कुछ मगर फिर भी
कहीं कुछ रिक्तता-सी है
जुड़े हैं हम बहुत लेकिन
कहीं कुछ भ्रंश बाकी है

न वो मैं हूँ
न वो तुम  हो
वही सुनसान सड़कें .

मेरा 'मैं' मुझे रोके
तुम्हारा 'तुम' तुम्हें बांधे
बहुत मुश्किल है मुक्त होना
खुलें और हो रहें आधे
न ये मंज़ूर है तुमको
न ये मंज़ूर है मुझको
मगर कुछ कम नहीं यह भी
कि हम तुम साथ हैं दोनों .

न वो मैं हूँ
न वो तुम हो
वही सुनसान सड़कें. 














5 comments:

  1. मेरा 'मैं' मुझे रोके
    तुम्हारा 'तुम' तुम्हें बांधे
    बहुत मुश्किल है मुक्त होना...
    फिर क्यों बंद रखा है मैं और तू को ...
    हम में बदल जाने दीजिये ...
    की
    सड़के सुनसान ना रहे ...
    सूनी सड़कों का सूनापन महसूस हो रहा है बड़ी शिद्दत से ...!!

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  2. क्या बेहतरीन लिखा है पूरे जीवन को उतार दिया ...."

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  3. बहुत खूबसूरती से बयान किया है जीवन के सफ़र को।
    अभिभूत तो गये हैं जी हम तो।
    आभार।

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