जिसे चाहता था मिला नहीं
जिसे पा लिया उसे क्या करूँ
मैं उदास हूँ इसी बात पर
जियूं दर्द या कि हँसा करूँ .
जिसे प्यार से कभी आंख में
मैंने स्वप्न कह के बसा लिया
उसी शाम का भला किस तरह
किसी और से मैं बयां करूँ .
ये जो दर्द है ये अजीज है
जो ये रात है ये सवाल है
यूँ ही चाहता हूँ कि टूटकर
तुझे भूलने की दुआ करूँ .
जिन्हें पढ़ लिया वही गीत हैं
जो लिखे गए वही स्वप्न हैं
जो टपक गए मेरी आंख से
तेरे उन खतों का मैं क्या करूँ.
कभी याद की किसी डाल से
जो उलझ गयी थीं शरारतें
उन्हें बारिशों ने भिगो दिया
मैं उदास हूँ तो हुआ करूँ.
Friday, September 17, 2010
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सुन्दर गीतनुमा कविता ..
ReplyDelete@ जो टपक गए मेरी आंख से
ReplyDeleteतेरे उन खतों का मैं क्या करूँ.
ये क्या किया बन्धु?
इसे तो उस कहानी में आना था।
If you do not get the things you like, start liking the things you got(applicable on non living things).
ReplyDeleteखूबसूरत लफ़्ज़ों में दुविधा बयान की ऐ आपने। याद आ गई..
मैं गज़ल कहूँ या गज़ल सुनूँ, मुझे दे तो ..............।
जिन्हें पढ़ लिया वे गीत हैं ,
ReplyDeleteजो लिखे गए वे स्वप्न हैं ...
क्या बात है ...
अतिसुन्दर ...!
जिन्हें पढ़ लिया वही गीत हैं
ReplyDeleteजो लिखे गए वही स्वप्न हैं
जो टपक गए मेरी आंख से
तेरे उन खतों का मैं क्या करूँ
अच्छी लगी ये पंक्तियां . शायद कोई रास्ता नहीं है भावनाओं के इस मॊड़ के आगे. देखते हैं..........
शीर्षक तो ग़ालिब-सा !
ReplyDeleteयह दुविधा है, राह भी.
कुछ बहुत खूबसूरत पंक्तियां पा गया । सहेजकर रखूंगा इन्हें ।
mamaji kavita bahut hi jyada marmsparshi hai.Shayad aapki tarah mai bhi itni sundar panktiyan likh paun!!
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