Wednesday, September 15, 2010

सुन लो संसार के प्लेटो-अरस्तू

आज नहीं सदियों से
फूटते रहे हैं ज्योति-पुंज
फैलती रही है ज्ञान-रश्मि मृत्यु-लोक में
चेतना अतीत निज करने  सन्धान
काल-गति के संग पांव-पांव
डगर-डगर घूमती रही है अविराम .

झाँक उर-अंतर में पाने को परम सत
अंतस की ऑंखें धुंधलाई हैं बार-बार 
भीतर से बाहर फिर बाहर से भीतर
मिल जाये कुछ उत्तर
बस इसी एक प्रश्न का--
मैं कौन हूँ  ?

थके हैं मन तन क्षरते गए हैं
तर्कों के स्वर घुटे  प्राणहीन मौन हुए 
सारे सिद्धांत , शब्द , पन्ने किताबों के
चर्चे विद्वानों के , ज्ञान की आयोजनाएं
गए तो हैं सभी किन्तु  सिर्फ एक-दो ही पग .
शब्द कठिन अर्थ भरे , वाक्य सभी छोटे- बड़े
रचते हैं लोक एक भय का , रहस्य का
खींचते हैं रेखाएं धरती- आकाश तक
पाने को ओर-छोर अपना ही एक बार .

 जान लिया मैंने--  यह एक ने उद्घोष किया   
 ज्ञानी है , ज्ञानी है-- और कई स्वर मिले
सिद्ध करो -- कहकर यह ज्ञानी एक और हुआ
और एक , और एक , एक-एक फिर कई हुए
कहने के ढंग अलग
रहने के रंग अलग
खींच लिया घेरा और मान लिया सिद्ध हुए .
अनुयायी भेड़ बने चलते हैं साथ-साथ
जिसके संग जितने हैं
वह सत है उतने अंश
सत का यह मानदंड दिया सभी ज्ञानों ने.

जो तुमने जाना था वह सत तुम्हारा था
सुन लो संसार के प्लेटो -अरस्तू ,
जिसको मैं जानूंगा वह होगा  सत मेरा
मैं ही तो जानूंगा आखिर मैं कौन हूँ !
उस पल तुम थे , वह पल तुम थे
इस पल मैं हूँ , यह पल मैं हूँ
और दो पलों के बीच में अनंत है.

6 comments:

  1. शब्द कठिन अर्थ भरे , वाक्य सभी छोटे- बड़े
    रचते हैं लोक एक भय का , रहस्य का

    अद्भुत तारतम्य ,गहन अनवेषण
    लालित्य भी भरपूर है

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  2. "जो तुमने जाना था वह सत तुम्हारा था
    सुन लो संसार के प्लेटो -अरस्तू ,
    जिसको मैं जानूंगा वह होगा सत मेरा
    मैं ही तो जानूंगा आखिर मैं कौन हूँ !
    उस पल तुम थे , वह पल तुम थे
    इस पल मैं हूँ , यह पल मैं हूँ
    और दो पलों के बीच में अनंत है."

    सही तो कह रहे हैं आप, हरेक का सत\सत्य उसके लिये है।

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  3. ओढा हुआ सच अऊर भोगा हुआ सच समानांतर रेखा के जइसा हैं..मिलता हुआ देखाई देता है मगर मिलता नहीं है कहीं भी...बहुत सुंदर कविता!!

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  4. सुन्दर कविता..कम पढ़ने मिलती हैं इस तरह की कवितायें आजकल. बधाई.

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  5. @ जो तुमने जाना था वह सत तुम्हारा था
    सुन लो संसार के प्लेटो -अरस्तू ,
    जिसको मैं जानूंगा वह होगा सत मेरा
    मैं ही तो जानूंगा आखिर मैं कौन हूँ !
    उस पल तुम थे , वह पल तुम थे
    इस पल मैं हूँ , यह पल मैं हूँ
    और दो पलों के बीच में अनंत है.

    क्या बात कही है! 'अप्प दीपो भव'।

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  6. मैं ही तो जानूंगा आखिर मैं कौन हूँ ...
    सत्य वचन ...
    दार्शनिक(किंचित व्यंग्य भी) ख़याल ..!

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