Sunday, March 7, 2010

अपराध है बेटी होना

एक थी परी
फूल- सी खिली
सजी-सँवरी
बनी-ठनी झूमती फिरी.
कुछ स्वेटर बुने
मोज़े दस्ताने भी
झबले संग सपने--
कुछ जाने, अनजाने भी----
एक बेटी है इस बार बेटा ही होगा.

बेटी से कहती रही--
आएगा भैया छोटा-सा, नन्हा-सा.
छोटे-छोटे  हाथ होंगे, छोटे-छोटे पैर
दीदी कहेगा तुम्हें
ले लेगा सारे खिलोने  तुम्हारे
 छीनकर, प्यार से
तुम भी उसे प्यार करोगी ना!
बच्ची चुपचाप हिला देती सिर
तैर जाते आँखों में
ताई के, मौसी के, मामी के छोटे-छोटे बच्चे
छोटे-छोटे बच्चों के छोटे-छोटे हाथ-पैर
चुन लेती वह भी
एक छोटा-सा नाम.

एक दिन अचानक सब बदल गया.
बेटी है--- पता चल गया.
जिठानी ने जेठ से
ससुर ने सास से
कानाफूंसी की
सबकी राय बनी--
महंगाई बहुत बढ़ गयी है.
फिर एक शाम
एक रात
चुन लिया
जन्म देने - न देने का अधिकार
सुई, सीरिंज , दवा, औजार
और एक सपने का अंत हुआ.

कभी-कभी पूछती है बच्ची--
कब आयेगा छोटू माँ
छोटे-छोटे हाथों से छीनने खिलोने मेरे?
बच्ची तो बच्ची है
समझाए कौन--
सीता-सावित्री के देश में
अपराध है बेटी होना
नहीं तो, कौन किसे देता है मृत्युदंड
 अपनी ख़ुशी के लिए.

   
  

1 comment:

  1. ऐसी हाहाकारें सोई आत्माओं को जगाती हैं। जारी रखिए।

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