Saturday, February 20, 2010

दर्द का गीत

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मैं गीत लिखता हूँ
और दर्द गुनगुनाता हूँ
यह बात अक्सर समझ नहीं आती /
मैं प्रेम करता हूँ
और विश्वास हो जाता हूँ
यह बात अक्सर नज़र नहीं आती /
मैं देह जीता हूँ
और मन ढोता हूँ
यह बात कभी खबर नहीं बनती /
मैं आदमी हूँ
नहीं लिखा किसी किताब में
जानता हूँ फिर भी यह बात
क्योंकि
मैं गुनगुनाता हूँ दर्द
बन जाता हूँ विश्वास
और देह जीकर
मन ढोता हूँ /

1 comment:

  1. @ मैं गुनगुनाता हूँ दर्द
    बन जाता हूँ विश्वास
    और देह जीकर
    मन ढोता हूँ

    जियो Kant :)

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