Tuesday, June 11, 2013

सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !

सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !

बादल बरसे धरती हरसे
पत्ता-पत्ता जीवन सरसे
तन मेरा भी भीगे लेकिन
मन पपिहे-सा टेर लगाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !

चंचल पलकें ढलकी अलकें
जिन अधरों से अमृत छलके
छू साँसों से अर्घ्य समर्पित
उनको देवि ! नहीं कर पाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !

पास बिठाऊँ गीत सुनाऊँ
मन की बातें कहता जाऊं
चाहा है कई बार मगर फिर
मौन न जाने क्यों रह जाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता

नयन भिगोते आस पिरोते
संग तुम्हारे हँसते-रोते
दिन जीवन के कट जाते पर
स्वप्न भोर का मन कसकाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !

9 comments:

  1. वाह! कितना प्यारा गीत है!!!

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  2. बहुत ही सुन्दर गीत ,,, गाने का मन हो आया है ....गुनगुनाहट दिन भर रहेगी .... आभार

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  3. यह चिरन्तन नाता है -एक दो बरसात वाला नहीं! :-)

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  4. पन्त ?? :) , नहीं , आप ही.

    "पास बिठाऊँ गीत सुनाऊँ
    मन की बातें कहता जाऊं
    चाहा है कई बार मगर फिर
    मौन न जाने क्यों रह जाता
    सखि ! तुमसे यह कैसा नाता"

    बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियां.

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  5. मंगलवार 18/06/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
    आपके सुझावों का स्वागत है ....
    धन्यवाद !!

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  6. बहुत सुन्दर शब्दों में सुन्दर रचना
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post पिता
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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