Saturday, July 14, 2012

ईश्वर , मैं तुम्हारे पक्ष में खड़ा हूँ

मैं छानता हूँ कविताएं
जैसे छानती है माँ स्वेटर सलाई पर
अपने अजन्मे बच्चे के लिए

मैं कागज़ पर लिखता हूँ पहली पंक्ति
बिल्कुल पहली हराई की तरह
बीज बोने से पहले गीले खेत में

मैं अँगुलियों में घुमाता हूँ शब्द
अनामिका में पहनी पैती की तरह
पूजा के संकल्प से पहले

मैं रचता हूँ वह अचम्भा
ठहरा है ऋचाओं में जो श्वान बनकर
सदानीराओं के दर्शन मात्र से

मैं पूरा होना चाहता हूँ छोड़कर
कुछ अर्थगर्भी शब्द अंखुआते हुए
नम ज़मीन में
जहाँ बच रही है गर्मी

शब्द भर कविता , आँख भर पानी
सांस भर उम्मीद और मुट्ठी भर आसमान
किसके दिए मिलता है किसीको

अपनी सभी असहमतियों के साथ
ईश्वर , मैं तुम्हारे पक्ष में खड़ा हूँ  .



9 comments:

  1. सृजन के लिए जमीं हर रचनाकार को चाहिए .....
    बढियां भावों को लिया है

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  2. प्रभु! आपकी कविताएँ पढता हूँ तो इन दिनों नहीं लिखने की टीस मुखरित हुई जाती है। आप कौन देस लिए जाते हैं उड़ा के।

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  3. आह! ऐसा निर्मल समर्पण हो तो अभिव्यक्त हों ऐसे भाव।
    ..'छानती है माँ स्वेटर सलाई पर' को समझने का प्रयास कर रहा हूँ।

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  4. हर पंक्ति अपने मूल में देशज-भाव लिए हुए...गज़ब कहते हो प्रभु !

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  5. nice rajani bhai "mai pura hona chahta hun chhond kar kuchh arth garbhi shabd ankhute hue"

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  6. गजब ! बार बार पढ़ रहा हूँ. फेसबुक पर चार लाइन देखा था.

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  7. "ठहरा है ॠचाओं में जो श्वान बनकर "
    मलतब नही समझ पाया .

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  8. अंखुआते हुए हुए शब्दों ने जो आकृति ली है वह पूर्ण रूप से उर्वर माटी की उपज है ''एक गंम्भीर अर्थ देती कविता

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