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ये लड़कियाँ पहाड़ की
ये लड़कियाँ पहाड़ की
ये मन की अपने मन रखें
नयन की बस नयन रखें
हृदय की पीर तीर-सी
करके हर जतन रखें
नदी-सी मनचली,खिलीं
ज्यों डोलियाँ बहार की.
उगें तो धूप-सी उगें
ढलें तो सांझ-सी ढलें
उमर को गूँथ चोटियों
चलें तो राग-सी चलें
ये झील-सी बंधी-बंधी
औ मुक्त हैं बयार-सी.
स्वभाव बर्फ-सा कड़ा
जो प्रेम पा पिघल पड़ा
सजें तो ज्यों बनी-ठनी
औ सादगी तो कांगड़ा
ये कवि की प्रेम-कल्पना
कलम हैं चित्रकार की.
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आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...nice
ReplyDeleteKhoobsoorat rachana...holi mubarak ho!
ReplyDeleteअच्छा लिखा है, होली की शुभकामनायें
ReplyDeleteगांवो की जो बात
ReplyDeleteबातो की है रात
रातो के है सपने
सपनों में गांव
@ उगें तो धूप-सी उगें
ReplyDeleteढलें तो सांझ-सी ढलें
उमर को गूँथ चोटियों
चलें तो राग-सी चलें
ये झील-सी बंधी-बंधी
औ मुक्त हैं बयार-सी.
वो गाना है न "ये कौन चित्रकार है?" जाने क्यूँ याद आ गया। क्या इसे उसी धुन पर गाया जा सकता है ?