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बात सुनो पछुवा पवन
बात सुनो पछुवा पवन
अर्जन के उत्सव में रहने दो शेष तनिक
रिश्तों की स्नेहिल छुवन.
परदेसी पाती के अक्षर में पाने को
घिरते हैं अर्थ कई नयनों में बावरे
दोपहरी ग्रीषम की राहों में टक बांधे
बंजारे मन के सब खोले है घाव रे
अंखियों में पड़ आई झाँई की टीस लिखो
और पढो गीले नयन.
बात सुनो पछुवा पवन.
पीपल के पत्तों में डोला है सूनापन
पनघट की पाटी पर संझा के पांव पड़े
शहरों ने छीन लिए बेटे जवान सभी
बुढ़िया-से झुके-झुके गुमसुम सब गाँव खड़े
जाओ ना और कोई बेटा तुम छीनकर
लाने का देखो जतन.
बात सुनो पछुवा पवन.
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@ अर्जन के उत्सव में रहने दो शेष तनिक
ReplyDeleteरिश्तों की स्नेहिल छुवन.
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शहरों ने छीन लिए बेटे जवान सभी
बुढ़िया-से झुके-झुके गुमसुम सब गाँव खड़े
फैन बना लिया भैया, फैन !
ग्रीष्म की जगह ग्रीषम का प्रयोग जान बूझ कर किया क्या?