चलो तुम भूल गए सर्वस्व
मगर इतना तो होगा याद
बढ़ाकर मैंने अपना हाथ
सजाया था माथे पर चाँद
झपकना पलकों का तुम भूल
देखती रही थीं मेरी ओर
हुई आँखों-आँखों में बात
और कस गयी स्नेह की डोर
तुम्हारे नयनों से संवाद
मिली मन को मन की सौगात
फिसलती जाए पकड़ी डोर
संभाले नहीं संभलता गात
चले थे दो ही पग हम साथ
हो गयीं अपनी राहें दूर
किया है तुमने तो स्वीकार
मुझे पर हो कैसे मंजूर
दिया है तुमने तो दिल खोल
लिया ही गया न मुझसे भार
ह्रदय में कसके जो वह टीस
नयन को आंसू का उपहार
मेरे कंधे पर रखकर शीश
दिया था तुमने ही अधिकार
अधर से लिख देने का मीत
तुम्हारे अधरों पर निज प्यार
नहीं माना तुमको है याद
किया था तुमने मुझसे प्यार
कभी भीगी आँखों की कोर
रचा था सपनों का संसार
मगर मैं कैसे जाऊं भूल
मेरे जो जीवन का आधार
जहाँ स्थित मेरा अस्तित्व
करूँ कैसे उससे इनकार
कथा जो रही अधूरी आज
करूँ पूरी वह मेरी चाह
छिपाए रख न सकूँ अब और
अधर के मुस्काने में आह
रहो खुश तुमको मेरे दोस्त
समर्पित है मेरा उपहार
विदा की घड़ी तुम्हें लो आज
तुम्हारा लौटाता हूँ प्यार .
मगर इतना तो होगा याद
बढ़ाकर मैंने अपना हाथ
सजाया था माथे पर चाँद
झपकना पलकों का तुम भूल
देखती रही थीं मेरी ओर
हुई आँखों-आँखों में बात
और कस गयी स्नेह की डोर
तुम्हारे नयनों से संवाद
मिली मन को मन की सौगात
फिसलती जाए पकड़ी डोर
संभाले नहीं संभलता गात
चले थे दो ही पग हम साथ
हो गयीं अपनी राहें दूर
किया है तुमने तो स्वीकार
मुझे पर हो कैसे मंजूर
दिया है तुमने तो दिल खोल
लिया ही गया न मुझसे भार
ह्रदय में कसके जो वह टीस
नयन को आंसू का उपहार
मेरे कंधे पर रखकर शीश
दिया था तुमने ही अधिकार
अधर से लिख देने का मीत
तुम्हारे अधरों पर निज प्यार
नहीं माना तुमको है याद
किया था तुमने मुझसे प्यार
कभी भीगी आँखों की कोर
रचा था सपनों का संसार
मगर मैं कैसे जाऊं भूल
मेरे जो जीवन का आधार
जहाँ स्थित मेरा अस्तित्व
करूँ कैसे उससे इनकार
कथा जो रही अधूरी आज
करूँ पूरी वह मेरी चाह
छिपाए रख न सकूँ अब और
अधर के मुस्काने में आह
रहो खुश तुमको मेरे दोस्त
समर्पित है मेरा उपहार
विदा की घड़ी तुम्हें लो आज
तुम्हारा लौटाता हूँ प्यार .
उत्कृष्ट श्रंगारिक रचना...!
ReplyDeleteइस घड़ी में ऐसा गीत, टेलीपैथी में विशवास और बढ़ गया है.
ReplyDelete'विदा की घड़ी तुम्हें लो आज
तुम्हारा लौटाता हूँ प्यार'
ग़दर प्रोफ़ेसर साहब|
इस प्रेम गीत का भाव सौंदर्य, प्रवाह, सहज भाषा शैली मन मोह लेती है। गुनगुनाने का मन करता है। इतने सुंदर प्रेम गीत अब पढ़ने को नहीं मिलते।
ReplyDelete...आभार।
वाह!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत है।
dil ko chhune wali rachna. badhayi
ReplyDeleteहाँ, सहजता ही तो बाँधती है। प्रेमिल अहसास भी।
ReplyDeleteआभार।
ये तो स्टेप वाईज मामला था -कड़ी आखिर टूटी कैसे?
ReplyDeleteसुन्दर गीत है।
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
ReplyDeleteजयशंकर प्रसाद की "आत्मकथा" नामक कविता याद हो आयी !
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