सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !
बादल बरसे धरती हरसे
पत्ता-पत्ता जीवन सरसे
तन मेरा भी भीगे लेकिन
मन पपिहे-सा टेर लगाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !
चंचल पलकें ढलकी अलकें
जिन अधरों से अमृत छलके
छू साँसों से अर्घ्य समर्पित
उनको देवि ! नहीं कर पाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !
पास बिठाऊँ गीत सुनाऊँ
मन की बातें कहता जाऊं
चाहा है कई बार मगर फिर
मौन न जाने क्यों रह जाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता
नयन भिगोते आस पिरोते
संग तुम्हारे हँसते-रोते
दिन जीवन के कट जाते पर
स्वप्न भोर का मन कसकाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !
बादल बरसे धरती हरसे
पत्ता-पत्ता जीवन सरसे
तन मेरा भी भीगे लेकिन
मन पपिहे-सा टेर लगाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !
चंचल पलकें ढलकी अलकें
जिन अधरों से अमृत छलके
छू साँसों से अर्घ्य समर्पित
उनको देवि ! नहीं कर पाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !
पास बिठाऊँ गीत सुनाऊँ
मन की बातें कहता जाऊं
चाहा है कई बार मगर फिर
मौन न जाने क्यों रह जाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता
नयन भिगोते आस पिरोते
संग तुम्हारे हँसते-रोते
दिन जीवन के कट जाते पर
स्वप्न भोर का मन कसकाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !
वाह! कितना प्यारा गीत है!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत ,,, गाने का मन हो आया है ....गुनगुनाहट दिन भर रहेगी .... आभार
ReplyDeleteयह चिरन्तन नाता है -एक दो बरसात वाला नहीं! :-)
ReplyDeleteपन्त ?? :) , नहीं , आप ही.
ReplyDelete"पास बिठाऊँ गीत सुनाऊँ
मन की बातें कहता जाऊं
चाहा है कई बार मगर फिर
मौन न जाने क्यों रह जाता
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता"
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियां.
मंगलवार 18/06/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है ....
धन्यवाद !!
sundar geet ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्दों में सुन्दर रचना
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गीत
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