Saturday, June 22, 2013

कैसा गीत सुनाऊं

तुम्हीं बताओ आज तुम्हें मैं कैसा गीत सुनाऊं
अपने मन की बात कहूँ या जग की रीत सुनाऊं

कुछ ऐसा जो हँसी बिखेरे या आंसू बरसाए
कुछ यौवन की रंगरलियाँ या फिर बचपन के साए
बीते दिन जो लाया करतीं किरणों वाली परियां
या आगत का अनजाना पल जिसने स्वप्न दिखाए

सब कुछ हार गया मैं जिसमें ऐसी जीत सुनाऊं

गाऊं मैं हेमंत शिशिर या सावन की बरसातें
जेठ की जलती दोपहरी या भादों वाली रातें
क्या वसंत की मादकता या धरती की अंगड़ाई
या फिर गीतों में मैं ढालूं फागुन वाली बातें

गिनने को जो दिन दे जाए ऐसी प्रीत सुनाऊं

इस दुनिया से दूर की बातें या जग की सच्चाई
भीड़ में खोया जीवन या कि मुट्ठी भर तन्हाई
संबंधों के बंधन या फिर आवारा आज़ादी
या वो आँचल तुम्हें सुनाऊं जिसमें धरा समाई

मुझको गीत बनाया जिसने वो मनमीत सुनाऊं
तुम्हीं बताओ आज तुम्हें मैं कैसा गीत सुनाऊं 

4 comments:

  1. वही वाला मनमीत सुना दीजिये ्जिसने आपको गीत बनाया !

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  2. बहुत ही प्यारा हदय से निकला गीत है ।

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