न उस शहर मे अब तुम रहती हो
न उस शहर मे अब मै रहता हूँ
पर हम दोनो ही के पास है
अपने-अपने हिस्से का वह शहर
जो कहीँ भी बस जाता है
आपस मे बात करते ही.
यह और बात है कि
प्रेम करने से होने तक की खबर
क़त्ल की कहानियो के साथ छपती थी
हमारे शहर के अखबार मे
रास्ते किनारे पेड पर अटकी लाल रिबन-सी याद
हवाओ मे फडफडाती अब भी है
समय के साथ बदरंग होकर भी.
शहर बदलता है और लोग भी
गली-मोहल्लो-चौराहो की सूरत के साथ
मगर ज़िन्दा रहता है एक शहर
हमारे-तुम्हारे भीतर बचे प्रेम-सा
बिल्कुल वैसा ही मन के किसी कोने मे
जैसा देखा था हमने उसे एक-दूसरे के प्रेम मे.
Thursday, October 27, 2011
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क्योंकि कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं।
ReplyDeleteसाथ ही चलता है, साथ ही रहता है, जीवंत नगर!
ReplyDeleteन उस शहर में....बात करते ही।
ReplyDelete..यह अंश बहुत ही अच्छा लगा।
bahut sundar bhav achhe lage ......
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना जो बेहद अपनी सी लगी...
ReplyDeleteसमय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_27.html
very heart touching lines..
ReplyDeletekavita bahut achhi lagi .
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