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उस अंतिम मुलाक़ात के दिन
बादल छाये रहे आसमान में
धूप रह-रहकर उतरी धनखेतों में,
हवा डोलती फिरी उदास-सी
उफन आयी नदी के तीर-तीर,
फूल-फूल उठे कुशा के वन
ऊसर धूसर से दुधिया हुआ.
उस अंतिम मुलाक़ात के दिन
कुछ क्षण लौट-लौट आए
समय की लम्बी दूरियां तय कर,
कुछ शब्द बिखर-बिखर गए
हवा के आघातों से,
कुछ गीत घुमड़ते रहे कंठ में,
कुछ धुनें गूंजी निःशब्द ,
कुछ अर्थ सन्चरित हुए संकेतों से,
कुछ होंठ ढूंढ़ते रहे शब्द
कुछ शब्द ढूंढ़ते रहे भाव,
आँखों ने तलाशे एकांत कोने
टिक सकें जहाँ सबसे बचकर.
और भी बहुत कुछ हुआ
उस अंतिम मुलाक़ात के दिन.
एक जोड़ी कदम उठे चलने के लिए,
एक जोड़ी हाथ जुड़े नमन की मुद्रा में,
एक जोड़ी आँखों ने देखा दूर सबके पार
और एक रुआंसा मन काँप गया
अंजलि में भरे अर्घ्य-सा.
उस अंतिम मुलाक़ात के दिन
एक लडके ने बिना देखे घुमा लिया चेहरा
एक लड़की हैरान-सी देखती रही
उस अंतिम मुलाक़ात के दिन.
Sunday, February 28, 2010
पछुवा पवन
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बात सुनो पछुवा पवन
बात सुनो पछुवा पवन
अर्जन के उत्सव में रहने दो शेष तनिक
रिश्तों की स्नेहिल छुवन.
परदेसी पाती के अक्षर में पाने को
घिरते हैं अर्थ कई नयनों में बावरे
दोपहरी ग्रीषम की राहों में टक बांधे
बंजारे मन के सब खोले है घाव रे
अंखियों में पड़ आई झाँई की टीस लिखो
और पढो गीले नयन.
बात सुनो पछुवा पवन.
पीपल के पत्तों में डोला है सूनापन
पनघट की पाटी पर संझा के पांव पड़े
शहरों ने छीन लिए बेटे जवान सभी
बुढ़िया-से झुके-झुके गुमसुम सब गाँव खड़े
जाओ ना और कोई बेटा तुम छीनकर
लाने का देखो जतन.
बात सुनो पछुवा पवन.
बात सुनो पछुवा पवन
बात सुनो पछुवा पवन
अर्जन के उत्सव में रहने दो शेष तनिक
रिश्तों की स्नेहिल छुवन.
परदेसी पाती के अक्षर में पाने को
घिरते हैं अर्थ कई नयनों में बावरे
दोपहरी ग्रीषम की राहों में टक बांधे
बंजारे मन के सब खोले है घाव रे
अंखियों में पड़ आई झाँई की टीस लिखो
और पढो गीले नयन.
बात सुनो पछुवा पवन.
पीपल के पत्तों में डोला है सूनापन
पनघट की पाटी पर संझा के पांव पड़े
शहरों ने छीन लिए बेटे जवान सभी
बुढ़िया-से झुके-झुके गुमसुम सब गाँव खड़े
जाओ ना और कोई बेटा तुम छीनकर
लाने का देखो जतन.
बात सुनो पछुवा पवन.
Friday, February 26, 2010
लड़कियाँ
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ये लड़कियाँ पहाड़ की
ये लड़कियाँ पहाड़ की
ये मन की अपने मन रखें
नयन की बस नयन रखें
हृदय की पीर तीर-सी
करके हर जतन रखें
नदी-सी मनचली,खिलीं
ज्यों डोलियाँ बहार की.
उगें तो धूप-सी उगें
ढलें तो सांझ-सी ढलें
उमर को गूँथ चोटियों
चलें तो राग-सी चलें
ये झील-सी बंधी-बंधी
औ मुक्त हैं बयार-सी.
स्वभाव बर्फ-सा कड़ा
जो प्रेम पा पिघल पड़ा
सजें तो ज्यों बनी-ठनी
औ सादगी तो कांगड़ा
ये कवि की प्रेम-कल्पना
कलम हैं चित्रकार की.
ये लड़कियाँ पहाड़ की
ये लड़कियाँ पहाड़ की
ये मन की अपने मन रखें
नयन की बस नयन रखें
हृदय की पीर तीर-सी
करके हर जतन रखें
नदी-सी मनचली,खिलीं
ज्यों डोलियाँ बहार की.
उगें तो धूप-सी उगें
ढलें तो सांझ-सी ढलें
उमर को गूँथ चोटियों
चलें तो राग-सी चलें
ये झील-सी बंधी-बंधी
औ मुक्त हैं बयार-सी.
स्वभाव बर्फ-सा कड़ा
जो प्रेम पा पिघल पड़ा
सजें तो ज्यों बनी-ठनी
औ सादगी तो कांगड़ा
ये कवि की प्रेम-कल्पना
कलम हैं चित्रकार की.
तुम
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तुम्हें कहकर विदा उस दिन हमारी भर गयी ऑंखें
कहीं भीतर कोई झरना बहाकर झर गयीं ऑंखें
न चाहा था कि तुमको दर्द अपने दिल का दिखलाऊँ
मगर ये हो नहीं पाया खुलासा कर गयीं ऑंखें.
अज़ब सी बेकली है दिल को समझाया नहीं जाता
ज़ुबां पर गीत हैं ढेरों मगर गाया नहीं जाता
न जाने क्या तुम्हारे पास अपना छोड़ आया हूँ
गयीं तुम दूर नज़रों से मगर साया नहीं जाता.
बहुत मजबूर था ये मन नयन के नीर के आगे
कसक, उलझन,परेशानी,हृदय की पीर के आगे
न कोई राह बन पायी जब इनसे पार जाने की
तुम्हारा नाम मैं जपता रहा तस्वीर के आगे.
कभी इकरार करती हो कभी मगरूर होती हो
कभी अपने हृदय के सामने मजबूर होती हो
बहुत बेचैन करता है तुम्हारे प्यार का ये ढंग
हमारे पास रहती हो हमीं से दूर होती हो.
तुम्हें कहकर विदा उस दिन हमारी भर गयी ऑंखें
कहीं भीतर कोई झरना बहाकर झर गयीं ऑंखें
न चाहा था कि तुमको दर्द अपने दिल का दिखलाऊँ
मगर ये हो नहीं पाया खुलासा कर गयीं ऑंखें.
अज़ब सी बेकली है दिल को समझाया नहीं जाता
ज़ुबां पर गीत हैं ढेरों मगर गाया नहीं जाता
न जाने क्या तुम्हारे पास अपना छोड़ आया हूँ
गयीं तुम दूर नज़रों से मगर साया नहीं जाता.
बहुत मजबूर था ये मन नयन के नीर के आगे
कसक, उलझन,परेशानी,हृदय की पीर के आगे
न कोई राह बन पायी जब इनसे पार जाने की
तुम्हारा नाम मैं जपता रहा तस्वीर के आगे.
कभी इकरार करती हो कभी मगरूर होती हो
कभी अपने हृदय के सामने मजबूर होती हो
बहुत बेचैन करता है तुम्हारे प्यार का ये ढंग
हमारे पास रहती हो हमीं से दूर होती हो.
कुछ फुटकर
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करके तिरछे नयन तुमने देखा मुझे
एक अजानी चुभन तुमने देखा मुझे
देह की देहरी से निकल आया कल
सांझ का दीप मन तुमने देखा मुझे.
गंध ने पुष्प की पाँखुरी पर लिखा
होंठ ने बांस की बांसुरी पर लिखा
कल वही गीत तुमसे मिलाकर नयन
सांस ने देह की देहरी पर लिखा.
मेरी यादों को मन में संवारोगे तुम
बंद आँखों छिपाकर निहारोगे तुम
मैं हथेली की रेखा में बस जाऊंगा
जब मुझे मीत कहकर पुकारोगे तुम.
अर्घ्य-सा अंजुरी में संभाला गया
पुष्प-सा देवता पर उछाला गया
मुझको जलना मिला उम्र भर के लिए
दीप था तम मिटे रोज़ बाला गया.
गीत हमने भी गाये ख़ुशी के लिए
फूल चुन-चुन के लाये ख़ुशी के लिए
और डबडबायी नज़र में पसरते रहे
मुस्कराहट के साये ख़ुशी के लिए.
करके तिरछे नयन तुमने देखा मुझे
एक अजानी चुभन तुमने देखा मुझे
देह की देहरी से निकल आया कल
सांझ का दीप मन तुमने देखा मुझे.
गंध ने पुष्प की पाँखुरी पर लिखा
होंठ ने बांस की बांसुरी पर लिखा
कल वही गीत तुमसे मिलाकर नयन
सांस ने देह की देहरी पर लिखा.
मेरी यादों को मन में संवारोगे तुम
बंद आँखों छिपाकर निहारोगे तुम
मैं हथेली की रेखा में बस जाऊंगा
जब मुझे मीत कहकर पुकारोगे तुम.
अर्घ्य-सा अंजुरी में संभाला गया
पुष्प-सा देवता पर उछाला गया
मुझको जलना मिला उम्र भर के लिए
दीप था तम मिटे रोज़ बाला गया.
गीत हमने भी गाये ख़ुशी के लिए
फूल चुन-चुन के लाये ख़ुशी के लिए
और डबडबायी नज़र में पसरते रहे
मुस्कराहट के साये ख़ुशी के लिए.
Thursday, February 25, 2010
होली के दोहे
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फिर फगुनाई धूप ने, छेड़े मन के तार
प्रणय निवेदन कर रहा, बूढ़ा हरसिंगार.
तेरी चूनर रंग गयी, मेरी भी तू रंग
फिर दोनों मिल घोटेंगे, कबिरा वाली भंग.
फिर अलसाई सांझ ने, रोशन किये चिराग
पांवों में फिर बज उठे, कई बैरागी राग.
खेतों-खेतों लग गया, मस्ती का अम्बार
बूढ़ा बरगद छेड़ गयी, पछुवा मंद बयार.
मैना जोगन हो गयी, तोता बना फकीर
शंकर को भाने लगे, कामदेव के तीर.
सरसों पीली हंस पड़ी,जौ ने किया मज़ाक
पिय तेरा घर आएगा , बता गया है काक.
फिर फगुनाई धूप ने, छेड़े मन के तार
प्रणय निवेदन कर रहा, बूढ़ा हरसिंगार.
तेरी चूनर रंग गयी, मेरी भी तू रंग
फिर दोनों मिल घोटेंगे, कबिरा वाली भंग.
फिर अलसाई सांझ ने, रोशन किये चिराग
पांवों में फिर बज उठे, कई बैरागी राग.
खेतों-खेतों लग गया, मस्ती का अम्बार
बूढ़ा बरगद छेड़ गयी, पछुवा मंद बयार.
मैना जोगन हो गयी, तोता बना फकीर
शंकर को भाने लगे, कामदेव के तीर.
सरसों पीली हंस पड़ी,जौ ने किया मज़ाक
पिय तेरा घर आएगा , बता गया है काक.
Saturday, February 20, 2010
तनु के लिए
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सबको ढूंढना पड़ता है
स्वयं अपना रास्ता ,
बैसाखियाँ दूर तक साथ नहीं देतीं ;
दूर तक साथ नहीं देते
माता, पिता,भाई या बहन;
हर रिश्ता कुछ दूर चल ठिठक जाता है.
उन्मत्त घोड़ा कैनवास पर आंकती
चांदनी धोई अंगुलियाँ
कप पकड़ते थरथराती हैं;
थरथराता है यह विश्वास कि
शरीर दूर तक साथ देता है.
दया, सहानुभूति,सांत्वना के जंगल में
एक उदास लड़की
कैनवास पर बिखेरती है रंग
और एक झील बन जाती है
बिलकुल उसकी आँखों- सी नीली.
एक घना कुंतली मेघ
झुक-झुक आता है झील पर.
लड़की हंसती है
और घोड़ा भाग जाता है
कैनवास के बाहर
आखिर Everyone has to find his own way.
सबको ढूंढना पड़ता है
स्वयं अपना रास्ता ,
बैसाखियाँ दूर तक साथ नहीं देतीं ;
दूर तक साथ नहीं देते
माता, पिता,भाई या बहन;
हर रिश्ता कुछ दूर चल ठिठक जाता है.
उन्मत्त घोड़ा कैनवास पर आंकती
चांदनी धोई अंगुलियाँ
कप पकड़ते थरथराती हैं;
थरथराता है यह विश्वास कि
शरीर दूर तक साथ देता है.
दया, सहानुभूति,सांत्वना के जंगल में
एक उदास लड़की
कैनवास पर बिखेरती है रंग
और एक झील बन जाती है
बिलकुल उसकी आँखों- सी नीली.
एक घना कुंतली मेघ
झुक-झुक आता है झील पर.
लड़की हंसती है
और घोड़ा भाग जाता है
कैनवास के बाहर
आखिर Everyone has to find his own way.
दर्द का गीत
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मैं गीत लिखता हूँ
और दर्द गुनगुनाता हूँ
यह बात अक्सर समझ नहीं आती /
मैं प्रेम करता हूँ
और विश्वास हो जाता हूँ
यह बात अक्सर नज़र नहीं आती /
मैं देह जीता हूँ
और मन ढोता हूँ
यह बात कभी खबर नहीं बनती /
मैं आदमी हूँ
नहीं लिखा किसी किताब में
जानता हूँ फिर भी यह बात
क्योंकि
मैं गुनगुनाता हूँ दर्द
बन जाता हूँ विश्वास
और देह जीकर
मन ढोता हूँ /
मैं गीत लिखता हूँ
और दर्द गुनगुनाता हूँ
यह बात अक्सर समझ नहीं आती /
मैं प्रेम करता हूँ
और विश्वास हो जाता हूँ
यह बात अक्सर नज़र नहीं आती /
मैं देह जीता हूँ
और मन ढोता हूँ
यह बात कभी खबर नहीं बनती /
मैं आदमी हूँ
नहीं लिखा किसी किताब में
जानता हूँ फिर भी यह बात
क्योंकि
मैं गुनगुनाता हूँ दर्द
बन जाता हूँ विश्वास
और देह जीकर
मन ढोता हूँ /
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