Friday, February 26, 2010

कुछ फुटकर

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करके तिरछे नयन तुमने देखा मुझे
एक अजानी चुभन तुमने देखा मुझे
देह की देहरी से निकल आया कल
सांझ का दीप मन तुमने देखा मुझे.

गंध ने पुष्प की पाँखुरी पर लिखा
होंठ ने बांस की बांसुरी पर लिखा
कल वही गीत तुमसे मिलाकर  नयन
सांस ने देह की देहरी पर लिखा.

मेरी यादों को मन में संवारोगे तुम
बंद आँखों छिपाकर निहारोगे तुम
मैं हथेली की रेखा में बस जाऊंगा
जब मुझे मीत कहकर पुकारोगे तुम.

अर्घ्य-सा अंजुरी में संभाला गया
पुष्प-सा देवता पर उछाला गया
मुझको जलना मिला उम्र भर के लिए
दीप था तम मिटे रोज़ बाला गया.

गीत हमने भी गाये ख़ुशी के लिए
फूल चुन-चुन के लाये ख़ुशी के लिए
और डबडबायी नज़र में पसरते रहे
मुस्कराहट के साये ख़ुशी के लिए.

1 comment:

  1. @ मैं हथेली की रेखा में बस जाऊंगा
    जब मुझे मीत कहकर पुकारोगे तुम.
    मरहब्बा !
    यार ! मुझे अपने बहुत निकट लगने लगे हो। सचमुच।
    बातें अधिक करते हो कि नहीं?
    कभी मिले तो बहुत, ढेर सारी बातें करेंगे।

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