रख दिया था जो कभी गीत-सा तुमने अधर पर
मैं उसी प्रतिदानपूरित स्नेह की फिर चाह में हूँ
मैं तुम्हारी राह में हूँ
मैं घरों में , मैं सड़क पर उम्र के इस मोड़ पर
देखता फिरता हूँ चेहरे जोड़कर कुछ तोड़कर
और फिर जाती निगाहों में वही तस्वीर जो
आरती की झिलमिलाती छाँह आया छोड़कर
फिर चले आए हैं पर्वत पार से उड़ते पखेरू
मैं भी ऐसे ही किसी की सांस में हूँ, आह में हूँ
मैं तुम्हारी राह में हूँ
मैं लकीरें खींचता हूँ बांधता आकार को मैं
शब्द गढ़ता हूँ अजाने अर्थ देता प्यार को मैं
रूप के इतिहास का खोजी रहा बरसों मगर
दे न पाया हूँ अभी तक एक कण संसार को मैं
दूर तक नाकामियों की रेत भर फैली हुई है
पर नदीजल-सा उसी उम्मीद में, उत्साह में हूँ
मैं तुम्हारी राह में हूँ .
मैं उसी प्रतिदानपूरित स्नेह की फिर चाह में हूँ
मैं तुम्हारी राह में हूँ
मैं घरों में , मैं सड़क पर उम्र के इस मोड़ पर
देखता फिरता हूँ चेहरे जोड़कर कुछ तोड़कर
और फिर जाती निगाहों में वही तस्वीर जो
आरती की झिलमिलाती छाँह आया छोड़कर
फिर चले आए हैं पर्वत पार से उड़ते पखेरू
मैं भी ऐसे ही किसी की सांस में हूँ, आह में हूँ
मैं तुम्हारी राह में हूँ
मैं लकीरें खींचता हूँ बांधता आकार को मैं
शब्द गढ़ता हूँ अजाने अर्थ देता प्यार को मैं
रूप के इतिहास का खोजी रहा बरसों मगर
दे न पाया हूँ अभी तक एक कण संसार को मैं
दूर तक नाकामियों की रेत भर फैली हुई है
पर नदीजल-सा उसी उम्मीद में, उत्साह में हूँ
मैं तुम्हारी राह में हूँ .
सुंदर नवगीत।
ReplyDeleteतुम मेरी मंजिल, पता भी तुम्हारा जानता हूँ
मैं तुम्हारी राह में हूँ...
फिर चले आए हैं पर्वत पार से उड़ते पखेरू
ReplyDeleteमैं भी ऐसे ही किसी की सांस में हूँ, आह में हूँ
मैं तुम्हारी राह में हूँ
....वाह! बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
आपकी ये वाली कवितायें विषणण कर जाती हैं ....कितना टूट कर लिखते हैं :-(
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ताजगी भरा गीत है ।
ReplyDeleteफिर चले आए हैं पर्वत पार से उड़ते पखेरू
ReplyDeleteमैं भी ऐसे ही किसी की सांस में हूँ, आह में हूँ
मैं तुम्हारी राह में हूँ
कैसे लिख पाते हैं ऐसा?
beautiful..
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