मैं समझना चाहता हूँ
तुम्हारे होने का मतलब
मैं उलझना चाहता हूँ
हर उस चीज से जो तुम तक जाती है
मैं पकड़ना चाहता हूँ
तुम्हारे सोचने के तरीके को
कि विवाद घूम-घूमकर
क्यूँ चले आते थे तुम तक
कि कोई पहचान तुमपर चिपकती क्यों नहीं थी
कि वह जगह किसने बेंच खाई
गुंजाइश थी जहाँ खड़े होकर बात करने की
कि दीवारों के आर-पार या तो घुटन है या शोर
या तो साजिशें हैं या फिर चीख
तर्क करने की नहीं डरने की चीज है अब
मैं जो सोचना भी चाहूँ तो डर लगता है---
कोई पढ़ रहा है मेरे विचार
और हो रहा है आहत !
हुसैन, अच्छा है तुम्हारे घोड़े बेलगाम हैं
वे नहीं जानते लोहे का स्वाद
और ये बात लुहारों को अखरनी ही चाहिए
कि उनके हथौड़े , आग और चोट पर
हर बार भारी पड़ जाते रहे तुम्हारे घोड़े ।
तुम्हारे होने का मतलब
मैं उलझना चाहता हूँ
हर उस चीज से जो तुम तक जाती है
मैं पकड़ना चाहता हूँ
तुम्हारे सोचने के तरीके को
कि विवाद घूम-घूमकर
क्यूँ चले आते थे तुम तक
कि कोई पहचान तुमपर चिपकती क्यों नहीं थी
कि वह जगह किसने बेंच खाई
गुंजाइश थी जहाँ खड़े होकर बात करने की
कि दीवारों के आर-पार या तो घुटन है या शोर
या तो साजिशें हैं या फिर चीख
तर्क करने की नहीं डरने की चीज है अब
मैं जो सोचना भी चाहूँ तो डर लगता है---
कोई पढ़ रहा है मेरे विचार
और हो रहा है आहत !
हुसैन, अच्छा है तुम्हारे घोड़े बेलगाम हैं
वे नहीं जानते लोहे का स्वाद
और ये बात लुहारों को अखरनी ही चाहिए
कि उनके हथौड़े , आग और चोट पर
हर बार भारी पड़ जाते रहे तुम्हारे घोड़े ।
कुछ प्रश्नों के उत्तर मांगती हैं यह पोस्ट .....
ReplyDeleteलुहार रो रहे हैं बेलगाम घोड़ों को देखकर। वे कहते हैं कि जब तुम्हे लगाम पहनाने की कूबत ही नहीं तो नाहक हमें परेशान करते हो! क्या घास बनाकर मानोगे?
ReplyDeleteजुदा अंदाज़ और शैली में रची गई रचना
ReplyDeleteचाहने के बजाय करने का समय है !
ReplyDeleteनेकी कर दरिया में डाल अरे अब तो बदल
और जो तेरे मन में आये तुरंतै कर डाल||
~दुनाली फतेहपुरी
दौड़ा दिया आपने अस्तबल से बिना लगाम घोड़ो को :)
ReplyDeleteघोड़े अमरत्व पा गये है ...
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