पड़ गए हैं उतान मुद्रा में
वाद की खटिया बिछाकर
कुछ विकट संभावनाशील प्रबुद्ध विचारक
अटक गयी है वायु
विकारवश
सिद्धांतों की सतत जुगाली से ।
क्या करें किस रीति निकले
फँस गयी है फाँस-सी जो गले में
हूक भरते , खेचरी मुद्रा बनाते
तानते हैं पाँव धनु की तान-सी
फिर डोलते हैं
दोलकों की लय में जैसे ,
क्रोध , फिर दुत्कार, अब दयनीयता है ।
क्या करें, लाएं कहाँ से सांचे
हो सके जिसमें कि फिट यह आदमी
यह आदमी जो बोलता है सच
यह आदमी जो दर्द को दर्द कहता है
यह आदमी जो भूख में भी मुस्कुराता है
यह आदमी जो बस आदमी है
निपट नितांत बेलाग बस आदमी
क्या करें इसका कि कुछ हम-सा दिखे
क्या करें इसका कि कुछ बदनाम हो
क्या करें इसका कि कुछ कमज़ोर हो
क्या करें इसका कि कुछ संतप्त हो
कि अब तक की सभी सीखी हुई तरकीब से
यह बंध न पाया है किसी सिद्धांत में
यह वाद के खांचे से बाहर है अगर
यह टिप्पणी है हर तरह के वाद पर
यह रिजेक्शन है हरेक उस वाद का
जिसके लिए इन्सान बस औजार है
अतः संभलो , परम प्रबुद्ध विचारक !
जुगाली फिर कभी करना तुम सिद्धांत की
अब दर्द की खातिर दवाई ढूंढ़नी है
ढूँढना है प्रात अँधेरी रात का
यह वाद की खटिया पुरानी हो गयी
यह वाद की खटिया उठाने का समय है ।
वाद की खटिया बिछाकर
कुछ विकट संभावनाशील प्रबुद्ध विचारक
अटक गयी है वायु
विकारवश
सिद्धांतों की सतत जुगाली से ।
क्या करें किस रीति निकले
फँस गयी है फाँस-सी जो गले में
हूक भरते , खेचरी मुद्रा बनाते
तानते हैं पाँव धनु की तान-सी
फिर डोलते हैं
दोलकों की लय में जैसे ,
क्रोध , फिर दुत्कार, अब दयनीयता है ।
क्या करें, लाएं कहाँ से सांचे
हो सके जिसमें कि फिट यह आदमी
यह आदमी जो बोलता है सच
यह आदमी जो दर्द को दर्द कहता है
यह आदमी जो भूख में भी मुस्कुराता है
यह आदमी जो बस आदमी है
निपट नितांत बेलाग बस आदमी
क्या करें इसका कि कुछ हम-सा दिखे
क्या करें इसका कि कुछ बदनाम हो
क्या करें इसका कि कुछ कमज़ोर हो
क्या करें इसका कि कुछ संतप्त हो
कि अब तक की सभी सीखी हुई तरकीब से
यह बंध न पाया है किसी सिद्धांत में
यह वाद के खांचे से बाहर है अगर
यह टिप्पणी है हर तरह के वाद पर
यह रिजेक्शन है हरेक उस वाद का
जिसके लिए इन्सान बस औजार है
अतः संभलो , परम प्रबुद्ध विचारक !
जुगाली फिर कभी करना तुम सिद्धांत की
अब दर्द की खातिर दवाई ढूंढ़नी है
ढूँढना है प्रात अँधेरी रात का
यह वाद की खटिया पुरानी हो गयी
यह वाद की खटिया उठाने का समय है ।
बस तुरीयावस्था बाकी है :)
ReplyDeletegood bablu ji vicharo ki
ReplyDeleteparipkavta sarahaniya hai
बहुत मस्त कहा है !
ReplyDeleteएकदम सही, न जाने कितनी ज़ुबानों को आवाज़ दी है इन शब्दों ने ...
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