रात भर चांदनी बस तुम्हारे लिए
जुगनुओं की सजाती रही अल्पना
बिन बुलाए नयन नीर लेकर मेरे
द्वार आता रहा दर्द का पाहुना
चूड़ियों से भरे हाथ सूने हुए
रात आई ढली दर्द दूने हुए
सारे पुरवा के झोंके उदासी भरे
वेदना के रुपहले नमूने हुए
दीप-सा रात भर कोई जलता रहा
और सिसकती रही रात भर साधना
पायलों को कसकती कहानी मिली
पीर होंठों को कोई अजानी मिली
गुनगुनाए महावर जिसे उम्र भर
इंतज़ारों की कविता पुरानी मिली
गंध-सा रात भर कोई छलता रहा
और भटकती रही रात भर कामना ।
जुगनुओं की सजाती रही अल्पना
बिन बुलाए नयन नीर लेकर मेरे
द्वार आता रहा दर्द का पाहुना
चूड़ियों से भरे हाथ सूने हुए
रात आई ढली दर्द दूने हुए
सारे पुरवा के झोंके उदासी भरे
वेदना के रुपहले नमूने हुए
दीप-सा रात भर कोई जलता रहा
और सिसकती रही रात भर साधना
पायलों को कसकती कहानी मिली
पीर होंठों को कोई अजानी मिली
गुनगुनाए महावर जिसे उम्र भर
इंतज़ारों की कविता पुरानी मिली
गंध-सा रात भर कोई छलता रहा
और भटकती रही रात भर कामना ।
आप भी माहवार हुये जाते हैं :)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दर्द उकेरा है...!
ReplyDelete..और हाँ,दर्द कविता में ही रहे तो अच्छा है !
क्या कहने, मुझे बात करो ...मतलब कीजिये :) अभी का अभी
ReplyDelete9415300706
गज़ब! आप जब आत़े हैं, क्या खूब आत़े हैं :)
ReplyDeleteआकी याद आती रही रात भर
ReplyDeleteचश्मेनम मुस्कुराती रही रात भर!
आपका फेसबुक से बाहर आना हमारी आत्मा की सेहत के लिए बेहतर है!!
"..सारे पुरवा के झोंके उदासी भरे
ReplyDeleteवेदना के रुपहले नमूने हुए..." गज़ब है।
हाँ, यहाँ आपको पढ़ना तो हमेशा ही खूबसूरत है।