ये उदासियाँ भी मेरे ही हिस्से आनी थीं
कि जैसे आती है
रात भर जागी हुई आँखों में नींद
और गंधाते पानी में मछलियों को सांस
बस जी लेने भर
उदास होना जीवित होना है
रोज़मर्रा की लंगडी दौड में
कि खराब होना अब भी खराब है
और गलत बिलकुल उतना ही गलत
न ज्यादा न कम सांस भर
उदासी आइना है
और सबूत भी
जीवित होने का.
कि जैसे आती है
रात भर जागी हुई आँखों में नींद
और गंधाते पानी में मछलियों को सांस
बस जी लेने भर
उदास होना जीवित होना है
रोज़मर्रा की लंगडी दौड में
कि खराब होना अब भी खराब है
और गलत बिलकुल उतना ही गलत
न ज्यादा न कम सांस भर
उदासी आइना है
और सबूत भी
जीवित होने का.
ओह!
ReplyDelete...कि जैसे आती है
रात भर जागी हुई आँखों में नींद
और गंधाते पानी में मछलियों को सांस
बस जी लेने भर...
मन बहुत सोचता है कि उदास न हो
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाये? --’अज्ञेय’
मैं आऊँ, कुछ भी कह जाऊँ- हिसाब की टिप्पणी ही समझिए! मेरा कुछ कहना अपने भीतर का हुलास दिखाना है।
आपकी टिप्पणी की हमेशा प्रतीक्षा रहती है, हिमांशु जी.
Deleteउदासी प्यारी लगने लगी। कुछ सासें तो बढ़ ही जायेंगी अपनी।..आभार।
ReplyDeleteउदासी के अपने अलग मजे हैं...!
ReplyDeleteउदासी और ग़म तो एक जलती हुई अगरबत्ती कि तरह होता है जो देर तक जलकर खुशबू बिखेरती रहती है, और खुशियाँ सिर्फ एक फुलझड़ी कि तरह जो ज़रा देर जल कर बुझ जाया करती है।
ReplyDeleteकितने दिन बाद लौटे हैं सर, आमद भली लगी।
ReplyDeleteअब तो उदासी न हो तो हम उदास हो जाते हैं :)
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