बांटता ग़म सभी साथ तेरे मगर
तुझपे जाने मुझे क्यों भरोसा न था
यह नहीं कि तुझे मैंने पूजा नहीं
या कभी टूटकर तूने चाहा न था
मेरी आँखें प्रिये तेरी आँखों में थीं
तेरी साँसों की मधुगंध थी सांस में
मेरे होंठों से पिघली हँसी में तू ही
दर्द-सा ले फिरा तुझको एहसास में
पर निरंतर रही टीसती एक व्यथा
अश्रुजल में तेरे जिसको धोया न था
साँझ की हर ढलकती किरण लिख गयी
मौन के अक्षरों में कथाएँ कई
रात-सा मन पसरता रहा दूर तक
बाँध लेने को लाखों व्यथाएँ नई
भागवत की कथा-सा मैं बहता मगर
आवरण मन की पोथी का खोला न था .