Sunday, February 2, 2014

कुकुरमुत्ते

उग गए हैं ढेर सारे कुकुरमुत्ते
घर के नाबदान पर
छत्ते के छत्ते

सोचता हूँ क्या करूँ इनका
फ़ेंक दूँ उखाड़कर
या फिर छोड़ दूँ यों ही
हो जाने के लिए विनष्ट
एक दिन चुपचाप अपने-आप
बिखर जाएँगे होकर चिंदी-चिंदी
न बचेगा कुछ भी निशान
जैसे कि बच जाता है
कुछ-न-कुछ हर लहलहाते पेड़ का

कुछ-न-कुछ बच जाने का
लिखा गया है अब तक जो भी इतिहास
चटख चमकीला सजीला है
उसका चटख रंग
पर सूरज की रौशनी का बंधुआ है

भर जाएँ सब पन्ने-के-पन्ने विरुदगाथाओं से
न रहे जगह कहीं भी तिलभर
किसी और के लिए
फिर भी ढूंढ ही लेंगे अपनी जगह
कहीं-न-कहीं हाशिए में ही सही कुकुरमुत्ते
और फिर बदल देंगे एकदिन
इतिहास की हर इबारत का अर्थ

नहीं होती है जरुरी चकाचौंध सूरज की
वे जानते हैं जीना प्रभामंडल के बिना भी
और यह बात
औरों से अधिक मालूम है
मुस्कुराते कुकुरमुत्तों को .
 


9 comments:

  1. इस नज़्म पर कुछ नहीं कहूँगा भाई!
    डीहवारा पर दिया-बाती के लिए सुस्वागतम और आभार!!
    फेसबुक इसकी कीमत पर मुझे नहीं सुहाता!! :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. लौट आया हूँ घर . लिपाई पुताई कर रहा हूँ , होली यहीं खेली जाएगी :)

      Delete
  2. निराला जी ने तो कुकुरमुत्ता के पीछे गुलाब तक को लताड दिया । बहुत सार्थक और प्रतीकात्मक कविता है यह ।

    ReplyDelete
  3. is baat kaa ahasaas kukurmutta hone ke saath hi mil jata hoga !

    ReplyDelete
  4. वाह क्या बात है बधाई हो

    ReplyDelete
  5. सुन्दर रचना, सामायिक , बेहतरीन अभिब्यक्ति , मन को छूने बाली पँक्तियाँ
    कभी इधर भी पधारें

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete