तवे से उतरती रोटियां
चली नहीं जाती हैं अपने-आप
वहां जहां कि होती है भूख
बहुत मायने रखता है
उन हाथों का हुनर
जो तय करते हैं
भूख से रोटी का रिश्ता
और अनुपात भी
रोटी केवल भूख के लिए नहीं होती
नहीं होती जैसे कि ज़मीन
केवल रहने के लिए
या कि नहीं होता पानी
केवल पानी भर बनकर
सबके लिए
ज़रूरतों से तय नहीं होते
संभावनाओं के समीकरण उलझे हुए
वे हमेशा देवता ही रहते हैं
जो छिपाकर रख लेते हैं आग
रोटियां औज़ार हैं
जिनसे खुलते हैं सत्ताओं के जटिल समीकरण
महत्वाकांक्षाओं की शतरंजी बिसात पर .
चली नहीं जाती हैं अपने-आप
वहां जहां कि होती है भूख
बहुत मायने रखता है
उन हाथों का हुनर
जो तय करते हैं
भूख से रोटी का रिश्ता
और अनुपात भी
रोटी केवल भूख के लिए नहीं होती
नहीं होती जैसे कि ज़मीन
केवल रहने के लिए
या कि नहीं होता पानी
केवल पानी भर बनकर
सबके लिए
ज़रूरतों से तय नहीं होते
संभावनाओं के समीकरण उलझे हुए
वे हमेशा देवता ही रहते हैं
जो छिपाकर रख लेते हैं आग
रोटियां औज़ार हैं
जिनसे खुलते हैं सत्ताओं के जटिल समीकरण
महत्वाकांक्षाओं की शतरंजी बिसात पर .
शानदार !
ReplyDelete@prkant--सच में...शानदार!
Deletebhut khub bhaiya
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteसच है. रोटियों की जरूरत ही एक षड्यन्त्र है इश्वर व्दारा हमारे लिए.
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