अभी जितना कहा है
और उससे भी कम जितना लिखा है
और छोड़ दिया है
शब्द, वाक्य, अर्थ की पोटलियों में
इधर-उधर
मेज-किताब-अख़बार
सब कहीं भटकने के लिए
उससे कहीं ज्यादा- बहुत ज्यादा
रह गया है
टकने से-
किसी कमीज़ पर बटन बन,
छलकने से-
पवित्र अर्घ्य-सा अंजुरी से,
दहकने से-
भूख या प्यास की तरह
या फिर कसकने से-
हृदय के किसी अज्ञात अतल में.
हाशिया छोटा ही सही
बदल सकता है
पन्ने की इबारत
पूरी-की-पूरी
बिना दावा किये ,
दे सकता है
अर्थहीन को अर्थ
या अनर्थ.
वस्तुतः
जो कुछ भी रह गया है
कहीं कुछ होने से
मेरी ही तरह हाशिये पर है.
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"हाशिया छोटा ही सही
ReplyDeleteबदल सकता है
पन्ने की इबारत"
.... बेहतरीन!!
शुभकामनाएं......
शब्द, वाक्य, अर्थ की पोटलियों में
ReplyDeleteइधर-उधर
bahut khoob
@
ReplyDeleteरह गया है
टकने से-
किसी कमीज़ पर बटन बन,
छलकने से-
पवित्र अर्घ्य-सा अंजुरी से,
दहकने से-
भूख या प्यास की तरह
या फिर कसकने से-
हृदय के किसी अज्ञात अतल में.
कमाल की पंक्तियाँ !
ये हाशिये बड़े पाजी होते हैं। खुद छिद कर अर्जियों को फाइलों में दफन कर देते हैं।
अन्तिम पंक्तियाँ बहुत ही सशक्त है। अनछुए को स्पर्श करती अच्छी कविता।
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