Friday, February 25, 2011

सो जा री सो जा राजदुलारी !

चाँद का खिलौना है सांझ की अटारी
खेलेगी झूम-झूम बिटिया हमारी
सो जा री सो जा राजदुलारी

नींद दूर रहती है परियों के देश
जा ले जा पुरवा री जल्दी सन्देश
देर करे काहे तू जल्दी से जा री
बिटिया की अंखियों में नींद की खुमारी
सो जा री सो जा राजदुलारी

चांदी-सी चांदनी फूल-सा बिछोना
मोती-सी अंखियों में सोने-सा सपना
आयेगी निंदिया चढ़ गीत की सवारी
बिटिया की अंखियों में नींद की खुमारी
सो जा री सो जा राजदुलारी

नाना की सोनजुही नानी की मैना
दादी के नयनों की दिन और रैना
बाबा की गीत ग़ज़ल छंद कविता री
बिटिया की अंखियों में नींद की खुमारी
सो जा री सो जा राजदुलारी .

6 comments:

  1. मेरे विचार में बेस्ट फॉर्म कविता यही है, लोरी!! एकदम माता के प्यार की तरह निश्छल और पवित्र.. मुझे लगा कि मैं अपनी बिटिया के लिये गा रहा हूँ.. रजनी जी, चुराए लिये जा रहा हूँ!!

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  2. लल्ला लल्ला लोरी या सुर्मई अँखियों में या धीरे से आ जा री अम्ख़ियन में... सदियों से यह गीत की परम्परा एक गर्भनाल की तरह शिशु को माता के हृदय से जोड़ती रही है.. आपका यह गीत उतना ही पवित्र है, जितना माँ का दूध!!

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  3. प्रोफ़ैसर साहब, ममता की भाषा, वात्सल्य की बोली। सच कहा सलिल भाई चैतन्य भाई ने, इससे पवित्र और निश्छल भाव शायद हो ही नहीं सकते।

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  4. बहुत सुन्दर लोरी! और कुछ कहना अनावश्यक होगा।

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  5. प्‍यारी नाजुक सी लोरी.

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