deehwara--डीहवारा
जिंदगी के पिछवाड़े पड़ी कुछ चीज़ें जिनके होने से अपने होने का एहसास जिंदा है
Sunday, March 21, 2010
मेला
परिंदे उड़ान भरते हैं
आँखों में आसमान भरते हैं
मेले में भीड़ नहीं आती
मेले में मेहमान भरते हैं .
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मेरे बारे में
rajani kant
कुछ खास नहीं. हर आम आदमी की तरह रोज़ी-रोटी की चिंता और मन के कहीं किसी अँधेरे कोने में बहुत कुछ न हो पाने की टीस .इस टीस से मुक्त होने की जद्दो-ज़हद कुछ लिखवाती-पढवाती रहती है.
View my complete profile
followers
आपकी पसंद
कुकुरमुत्ते
उग गए हैं ढेर सारे कुकुरमुत्ते घर के नाबदान पर छत्ते के छत्ते सोचता हूँ क्या करूँ इनका फ़ेंक दूँ उखाड़कर या फिर छोड़ दूँ यों ही हो जाने...
तुम्हारा लौटाता हूँ प्यार
चलो तुम भूल गए सर्वस्व मगर इतना तो होगा याद बढ़ाकर मैंने अपना हाथ सजाया था माथे पर चाँद झपकना पलकों का तुम भूल देखती रही थीं मेरी ओर ...
हमारे प्रेम का शहर
न उस शहर मे अब तुम रहती हो न उस शहर मे अब मै रहता हूँ पर हम दोनो ही के पास है अपने-अपने हिस्से का वह शहर जो कहीँ भी बस जाता है आपस मे ...
बरसाती दोहे
काले बादल आ गए , पानी का घट साथ जाने किसने क्या कहा, गीली हो गयी रात. डूबी क्यारी धान की, पानी बढ़ा अपार हंसिया बैठा सोचता , कैसे कटे कुआ...
पल्टुआ, भैंस और स्टीफन हाकिंग
पल्टुआ बतियाता ही रह गया खड़ा नीम की आड़ में गवने से लौटी दुक्खी काका की बेटी फुलमतिया से और भैंस चर गयी लोबिया चन...
... उम्मीद होती भी बेहया है !
गहगहाकर फूला है गुलमोहर भभक्क लाल बंद पड़ी फैक्ट्री के भीतर टूटकर लटकती एस्बेस्टस शीट्स की आड़ में खुशी पगार से इतर भी होती है अगर चि...
दंतचियार ग़ज़ल
पत्थर पर सिर मारे जा मन की खीझ उतारे जा चुनने तक ही हक था तेरा अब तो दांत चियारे जा अपनी-अपनी ढपली सबकी अपने राग उचारे जा अंधी पीस...
हुसैन के घोड़े
मैं समझना चाहता हूँ तुम्हारे होने का मतलब मैं उलझना चाहता हूँ हर उस चीज से जो तुम तक जाती है मैं पकड़ना चाहता हूँ तुम्हारे सोचने के तरी...
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता !
सखि ! तुमसे यह कैसा नाता ! बादल बरसे धरती हरसे पत्ता-पत्ता जीवन सरसे तन मेरा भी भीगे लेकिन मन पपिहे-सा टेर लगाता सखि ! तुमसे यह कैसा ...
मैं तुम्हारी राह में हूँ
रख दिया था जो कभी गीत-सा तुमने अधर पर मैं उसी प्रतिदानपूरित स्नेह की फिर चाह में हूँ मैं तुम्हारी राह में हूँ मैं घरों में , मैं सड़क प...
Blog Archive
►
2014
(1)
►
February
(1)
►
2013
(8)
►
July
(3)
►
June
(3)
►
March
(2)
►
2012
(8)
►
July
(3)
►
June
(2)
►
May
(1)
►
April
(1)
►
March
(1)
►
2011
(34)
►
December
(1)
►
November
(1)
►
October
(1)
►
September
(2)
►
August
(2)
►
July
(4)
►
June
(5)
►
May
(3)
►
April
(3)
►
March
(4)
►
February
(4)
►
January
(4)
▼
2010
(60)
►
December
(4)
►
November
(6)
►
October
(5)
►
September
(5)
►
August
(3)
►
July
(4)
►
June
(8)
►
May
(7)
►
April
(3)
▼
March
(6)
मेला
देह की बात
शिमला: जैसा मैंने देखा
अपराध है बेटी होना
विदाई की रात
कनक चूड़ी
►
February
(8)
►
January
(1)
►
2009
(2)
►
October
(2)
Labels
aadmi
(1)
dard ka geet
(1)
saaman
(1)
अलगनी
(1)
अल्हैत
(1)
अश्रुजल
(1)
आकुल मन
(1)
आषाढ़
(1)
औरतें
(1)
कजरी
(1)
कुदालें
(1)
कृण्वन्तो विश्वमार्यम
(1)
ख़त
(1)
ग़ज़ल
(1)
गढ़
(1)
गीत गोविन्द
(1)
जंतर-मंतर
(1)
जनपथ
(1)
जमूरा
(1)
जीवधारी रुपए
(1)
जुगनू
(1)
ताल-तलैया
(1)
दर्द
(1)
देह
(2)
देह की दुकानें
(1)
परिंदे
(1)
पाखी
(1)
पाती
(1)
पीर
(1)
पुरातन मन
(1)
पूजा
(1)
पोथी
(1)
फागुन
(1)
बादल
(1)
बूढ़ा सूरज
(1)
मठ
(1)
मदारी
(1)
मन
(2)
मनमीत
(1)
माँ का ख़त
(1)
मेघ
(1)
मेला
(1)
राजपथ
(1)
रात
(1)
विरही
(1)
सपने
(1)
संसद
(1)
साडियां
(1)
साम्राज्यवाद
(1)
सावन
(3)
सांवला बादल
(1)
स्टीफन हाकिंग
(1)
Indiae
we are in
Indiae
.in
india's guide
Search This Blog
Follow this blog
No comments:
Post a Comment