आज तुमने रख लिया
अपना सब सामान
कपडे-लत्ते , रूमाल
जाने को ससुराल.
कल सुबह की ट्रेन और
रात अभी बाकी है
नींद नहीं आँखों में
आंसू से डब-डब
तैरते हैं दिन-महीने-साल.
सुड़कती हो नाक
सोचती हो जानेंगे जुकाम,
जानती नहीं, हज़ार मुंह हैं आंसू के
कह देंगे हाल.
देखती हो निद्रामग्न मिंटू की ओर
धीरे से छू देती हो सिर
पोछती हो आंसू
--स्मृति-जाल .
यह मेज, यह खिड़की
यह अलमारी,यह बेड
यह तकिया, यह चादर
सब छूती हो एक-एक कर
जैसे कह देना चाहती हो-
विदा, मेरे साथियों विदा!
नत सिर बंद आँखें
अँगुलियों में फँसी अंगुलियाँ
भीतर उमड़ता तूफ़ान
सवाल-जवाब, जवाब-सवाल.
छूट रहा सब कुछ जो
बांधा था अब तक
मुट्ठी में कसकर--
छोटी-छोटी खुशियाँ
धुपहले मटमैले सपने
पनियाई यादें
और भी बहुत कुछ जाना-अनजाना.
बेटी हो ना!
बहन हो ना!
यह तो होना ही था एक दिन.
Saturday, March 6, 2010
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