मन ख़ास का होता है
तुम आम ठहरे
ऐसा कैसे कर सकते हो
बौराए नहीं इस बार !
इस बार फूले नहीं फलने की उम्मीद में !
ऐसा भी कहीं होता है
कि मन नहीं हुआ तुम्हारा
और तुम नहीं फूटे बौर बनकर
बौर का फूटना मन की मौज भर नहीं है
किसी उम्मीद के लिए जीने का सबूत है
मोर्चा है खतरनाक बासंती चुप्पियों के खिलाफ
आम तुम्हारी ख़ामोशी उतनी आम नहीं
राडिया-कलमाडियों के नाजायज़ समय में.
सत्य वचन रजनी बाबू!!असली राजा तो आम ही है!!
ReplyDeleteअन्त की दो पंक्तियां अचानक कविता का रुख ही बदल दे रही हैं !
ReplyDeleteचलिये ! कम से कम आपने अपनी फोटॊ तो लगायी ! बहुत जरूरत थी इसकी !
ReplyDeleteबहुत अच्छा। ......खतरनाक बासन्ती चुप्पियों के खिलाफ.....
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