कैसे कह दूँ , मीत ! मुझे अब तुमसे प्यार नहीं है
जिन अधरों पर मेरी बातें
जिस जिह्वा पर मेरा नाम
जिन पलकों में सुबहें मेरी
जिन केशों में मेरी शाम
जिस पर था कल , आज कहीं मेरा अधिकार नहीं है
संग-संग चलना मौन सड़क पर
आँखों से कह देनी बात
अपने सारे साझे सपने
जो देखे थे हमने साथ
अब भी हैं मौजूद कहीं पर वह आकार नहीं है
टुकड़ा-टुकड़ा जी लेने को
कैसे दूं जीवन का नाम
खींच रही है नियति नटी हर
पल-छीन डोरी आठों याम
टिका सके जो चार चरण कोई आधार नहीं है.
Saturday, January 15, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
जिस पर था कल,आज कहीं मेरा अधिकार नहीं है
ReplyDeleteकैसे कह दूँ.......
बहुत मुश्किल है ये कह पाना, वैसे कहने की नौबत ही नहीं आती।
ReplyDeleteउन्हीं रास्तों पे जिनपे, कभी तुम थे साथ मेरे,
ReplyDeleteउन्हीं रास्तों ए पूछा, तेरा हमसफर कहाँ है!
.
सुंदर गीत!!
इस कविता की समझ और व्याख्या के लिए कतिपय संकेत शब्द -
ReplyDeleteगृह विरह ,संशय ,नैराश्य ,असमंजस ,अतीतजीविता...
आईये बाहर आईये ...बसंत आ पहुंचा है!
अति सुंदर!
ReplyDelete