अटारियों में अटकी रोशनी की किरण
सरकने लगी है
सरकंडे की छाजन के नीचे
काली पट्टियों पर दूधिया रेखाएं बनाने.
खड्डी खटकाते हाथ
लिखने लगे हैं
जूठन सहेजती आँखों की भाषा
लोकतंत्र के मुखपृष्ठ पर .
अंगूठे की रेखाओं का
कमला, विमला या रामप्रसाद हो जाना
प्रस्तावना है
एक नए संविधान की ,
धाराओं, अनुच्छेदों की जकड से मुक्त
गुलाबी खम्बों के बाहर भी अस्तित्व है जिसका.
पथरायी अँगुलियों
धुंधलाई आँखों
लिखा-पढ़ा हर अक्षर
घोषणापत्र है
उस नयी सुबह का
जो धूप बाँटने से पहले
कुल, जाति या धर्म नहीं पूछती.
( दूरदर्शन पर साक्षरता सम्बन्धी एक विज्ञापन देखकर )
Thursday, June 24, 2010
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bahut hi achhi kavita. bahut din bad koi is star ki kavita padhane ko mili. vadhai.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन पोस्ट...."
ReplyDeletebahut badiyaa
ReplyDeleteभासा का सुंदरता के साथ साथ भाव का अभिव्यक्ति भी बेजोड़ है...लयबद्धता देखकर त ताज्जुब होता है...मजा आ गया..
ReplyDeleteआशा करना, धरना और व्यक्त करना अच्छी बात है। अच्छी बातें बातें ही रह जाती हैं। अंगूठा लगाएँ या 'रामपरसाद' लिखें रामप्रसाद को पता है कि राम जी के प्रसाद उसके लिए नहीं हैं। अजीब बात यह है कि रामप्रसाद के लिए यह साधारण सी, आम सी बात है जिसको बस मान लेना होता है।
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