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मैं बुद्ध नहीं हूँ.
मेरे महाभिनिष्क्रमण और बुद्धत्त्व के बीच
नहीं किसी सुजाता की खीर
शाक्यों का वैभव
कपिलवस्तु के प्राचीर ;
है तो सिर्फ
यशोधरा की पीर
शुद्धोदन का मोतियाबिंद
मायादेवी का गठिया
राहुल की किताबों का बोझ
और सिद्धार्थ अकेला है.
कोई सारनाथ या बोधगया नहीं
किराये का मकान
टपकती छत
उखड़ते प्लास्टर
कहने को घर
पर
नहीं छोड़ सकता
डोर नहीं तोड़ सकता
महाभिनिष्क्रमण बेमानी है
जब तक एक भी आंख में पानी है .
अश्रुपूरित नयनों के लिए
पनियाये सपनों के लिए
जीना होगा
हर सुकरात के हिस्से का प्याला
पीना होगा.
Saturday, April 24, 2010
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बहुत खूबसूरत प्रस्तुति।
ReplyDeleteगौतम महान कहलाये कि ये सब छोड़ कर जा सके, पर वो तो वैसे भी राज परिवार से थे।
एक आम आदमी के मन में भी बुद्धत्व प्राप्ति की बात आ सकती है, पर कितनी ही बातें उसे बांध लेती है।
फ़िर से कहता हूं, बहुत खूबसूरत प्रस्तुति।
आभार।
और ये वर्ड वेरिइफ़िकेशन हटा दीजिये, कमेंट करना दुश्वार हो जाता है।
बहुत उम्दा प्रस्तुति!
ReplyDelete"बेहतरीन..वर्तमान को इतिहास से क्या जोड़ा है...."
ReplyDeleteआम आदमी की बात बहुत ढंग से कही।
ReplyDelete@ जब तक एक भी आंख में पानी है .
अश्रुपूरित नयनों के लिए
पनियाये सपनों के लिए
जीना होगा
बुद्ध भी लौट आए थे मित्र! उन्हें 'आँसू' का जो निस्तारण समझ आया, 79 साल की उम्र तक लोगों को समझाते रहे।
kahan the bhai, adbhut lekhan..
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