Thursday, April 5, 2012

इंतज़ार का गीत

रात भर चांदनी बस तुम्हारे लिए
जुगनुओं की सजाती रही अल्पना
बिन बुलाए नयन नीर लेकर मेरे
द्वार आता रहा दर्द का पाहुना

     चूड़ियों से भरे हाथ सूने हुए
     रात आई ढली दर्द दूने हुए
     सारे पुरवा के झोंके उदासी भरे
     वेदना के रुपहले नमूने हुए

दीप-सा रात भर कोई जलता रहा
और सिसकती रही रात भर साधना

     पायलों को कसकती कहानी मिली
     पीर होंठों को कोई अजानी मिली
     गुनगुनाए महावर जिसे उम्र भर
     इंतज़ारों की कविता पुरानी मिली

गंध-सा रात भर कोई छलता रहा
और भटकती रही रात भर कामना । 

6 comments:

  1. आप भी माहवार हुये जाते हैं :)

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  2. बहुत बढ़िया दर्द उकेरा है...!

    ..और हाँ,दर्द कविता में ही रहे तो अच्छा है !

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  3. क्या कहने, मुझे बात करो ...मतलब कीजिये :) अभी का अभी
    9415300706

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  4. गज़ब! आप जब आत़े हैं, क्या खूब आत़े हैं :)

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  5. आकी याद आती रही रात भर
    चश्मेनम मुस्कुराती रही रात भर!
    आपका फेसबुक से बाहर आना हमारी आत्मा की सेहत के लिए बेहतर है!!

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  6. "..सारे पुरवा के झोंके उदासी भरे
    वेदना के रुपहले नमूने हुए..."
    गज़ब है।

    हाँ, यहाँ आपको पढ़ना तो हमेशा ही खूबसूरत है।

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