Monday, May 31, 2010

सुनो अनु

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सुनो अनु!
ऐसा क्यों होता है
तुम अपने लिए चुनती हो दिन
और रात मेरे हिस्से आती है .

एक अलसाई सुबह
तुमने चुना था प्रेम
मैं बेचैन हो उठा.

एक खड़ी दोपहर
तुमने चुना यथार्थ
मैं दिग्भ्रांत हो उठा.

फिर, आज इस ऊदी शाम
तुमने चुना है जीवन
मैं पथरा  रहा हूँ.

सुनो अनु !
यह समर्पण , समझौता या सदाशयता नहीं
चयन का अधिकार है तुम्हारा
जिसे स्वीकार मैं करता हूँ .

10 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण!

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  2. kya kahne. good hai ji good.
    http://udbhavna.blogspot.com/

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  3. Khoobsoorat...Har ek pankatiyon me hai ik meethee khushboo..

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  4. ऐसे ही अनूठी रचनाये रचते रहिये हम पढ़ रहे है

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  5. अंतिम 4 पंक्तियाँ अनावश्यक लगीं। हो सकता है कि आप की रचना भावभूमि मेरी समझ से अलग रही हो।

    ईको तबा हींन। (नहीं समझे ?)
    कोई बात नहीं।
    :)

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